शहर से गांव तक अवैध शराब, नींद में आबकारी अमला और जनाब
ठेकेदारों की मनमानी पर आखिर कब लगेगा अंकुशप्राचीन काल में तप, त्याग और समाजोन्मुखी कार्यों के बल पर लोग ऋषि, मुनि, संत और तमाम तरह की उपाधियां प्राप्त कर समाज का कल्याण करते थे। आधुनिक समय में लोग नामकरण के जरिए ऋषि, मुनि, संत या भगवान तक बन जाते हैं किंतु काम उनके नाम के विपरीत होता है। कोई दारू बेचता है, कोई गांजा, कोई कोयला, रेत, कबाड़ के अवैध कारोबार में लिप्त है तो कोई अन्य आपराधिक गतिविधियों का सरगना बन बैठा है। सवाल यह उठता है कि विपरीत गुणधारी ऋषि-मुनि यदि नशा बेचेंगे तो समाज की दशा और दिशा कैसे बदलेगी? संभाग मुख्यालय सहित पूरे जिले में ऐसे ही लोग अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं जिस पर नियंत्रण नितांत आवश्यक है।
(अनिल द्विवेदी 7000295641)
शहडोल। ग्रामीण इलाकों में किराना दुकानों एवं गुमटियों पर धड़ल्ले से देशी- विदेशी शराब की अवैध बिक्री हो रही है। बैगा परिवारों के नाम पर गैर आदिवासी वर्ग के लोग कच्ची शराब बनाकर परोस रहे हैं। ग्रामांचल के अलावा शहर के ही विभिन्न हिस्सों में कच्ची-पक्की हर तरह की शराब सर्व सुलभ है। अवैध शराब की बिक्री रोकने के लिए जिम्मेदार विभागीय अमला हालांकि यदा-कदा कच्ची शराब पकड़ कर अपनी पीठ थपथपाने का उपक्रम करता है लेकिन वह कोरम पूर्ति मात्र ही कही जा सकती है। विभिन्न थानों के पुलिस अमले द्वारा जरूर अवैध कारोबार पर लगाम कसने की कोशिश की जाती है लेकिन वह भी नाकाफी साबित हो रही है और इसका मुख्य कारण विभाग का शराब ठेकेदारों को अभयदान अथवा उनके चंगुल में जकड़ा होना है।
(अनिल द्विवेदी 7000295641)
शहडोल। ग्रामीण इलाकों में किराना दुकानों एवं गुमटियों पर धड़ल्ले से देशी- विदेशी शराब की अवैध बिक्री हो रही है। बैगा परिवारों के नाम पर गैर आदिवासी वर्ग के लोग कच्ची शराब बनाकर परोस रहे हैं। ग्रामांचल के अलावा शहर के ही विभिन्न हिस्सों में कच्ची-पक्की हर तरह की शराब सर्व सुलभ है। अवैध शराब की बिक्री रोकने के लिए जिम्मेदार विभागीय अमला हालांकि यदा-कदा कच्ची शराब पकड़ कर अपनी पीठ थपथपाने का उपक्रम करता है लेकिन वह कोरम पूर्ति मात्र ही कही जा सकती है। विभिन्न थानों के पुलिस अमले द्वारा जरूर अवैध कारोबार पर लगाम कसने की कोशिश की जाती है लेकिन वह भी नाकाफी साबित हो रही है और इसका मुख्य कारण विभाग का शराब ठेकेदारों को अभयदान अथवा उनके चंगुल में जकड़ा होना है।
सर्वत्र सुलभ अवैध शराब
संभाग मुख्यालय के समीपी गांवों सहित दूरस्थ ग्रामीण अंचल में किराना दुकानों एवं गुमटियों पर धड़ल्ले से शराब की अवैध बिक्री हो रही है, जबकि आबकारी विभाग कथित तौर पर अवैध शराब बिक्री रोकने पर लगातार काम कर रहा है। आबकारी विभाग अपनी खुद की कुछ नीतियां बनाकर शराब व्यापार के संचालन व निगरानी के लिए जिम्मेदार होता है, लेकिन जिले में अवैध शराब को लेकर कार्रवाई नहीं हो रही है। ठेकेदारों के द्वारा बकायदा डायरी बनाकर गांवों में अवैध रूप से शराब का परिवहन एवं विक्रय किया जा रहा है, जिससे गांव की शांति तो भंग हुई है साथ ही पारिवारिक एवं घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई है।
सो रहा विभागीय अमला
सरकार ने शराब बिक्री के लिए नियमानुसार लाइसेंस जारी किए हैं, ताकि शराब की बिक्री सरकार के निर्धारित मापदंड अनुसार हो सके। इसकी पूरी जिम्मेदारी आबकारी विभाग को दी है, लेकिन विभाग के मुखिया और उनका अधीनस्थ अमला वास्तव में क्या कर रहा है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। यदि थोड़ा भी कर्तव्य बोध होता या सख्ती का आंशिक प्रदर्शन भी किया जाता तो शायदशराब के अवैध कारोबार की यह स्थिति जिले में नहीं होती। अवैध शराब बिक्री पर शासन प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। अवैध शराब बिक्री से ठेकेदार तो मालामाल हो रहा है, लेकिन किराना दुकानों पर अवैध शराब बिक्री से गांवों का माहौल बिगड़ रहा है।
सरकार ने शराब बिक्री के लिए नियमानुसार लाइसेंस जारी किए हैं, ताकि शराब की बिक्री सरकार के निर्धारित मापदंड अनुसार हो सके। इसकी पूरी जिम्मेदारी आबकारी विभाग को दी है, लेकिन विभाग के मुखिया और उनका अधीनस्थ अमला वास्तव में क्या कर रहा है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। यदि थोड़ा भी कर्तव्य बोध होता या सख्ती का आंशिक प्रदर्शन भी किया जाता तो शायदशराब के अवैध कारोबार की यह स्थिति जिले में नहीं होती। अवैध शराब बिक्री पर शासन प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। अवैध शराब बिक्री से ठेकेदार तो मालामाल हो रहा है, लेकिन किराना दुकानों पर अवैध शराब बिक्री से गांवों का माहौल बिगड़ रहा है।
ठेका दुकान का शराब गली-गली
शासन द्वारा आबकारी विभाग के माध्यम से हर साल देशी विदेशी मदिरा दुकानों के संचालन का ठेका दिया जाता है। ठेकेदार का यह दायित्व होता है कि वह शासन द्वारा निर्धारित अपनी दुकान के दायरे में रहकर मदिरा प्रेमियों को उनकी पसंद के मुताबिक निर्धारित दर-पर मदिरा उपलब्ध कराए लेकिन मैदानी हकीकत यह है कि उक्त ठेकेदारों द्वारा सरकार के किसी भी नियम निर्देश का पालन समुचित ढंग से किया जाता है और न ही निर्धारित दर और मानक का पालन किया जा रहा है। जहां तक दुकान के दायरे में रहकर कारोबार करने की शर्त है उसको तो ठेकेदारों ने तशरीफ़ के नीचे दबा रखा है और सरे आम गांव-गांव पैकारियों के माध्यम से देसी विदेशी मदिरा का अवैध कारोबार किया जा रहा है। जिस पर न तो विभाग का कोई नियंत्रण है और न ही पुलिस का, खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
किराना दुकानों एवं गुमटियों पर
सरकार ने शराब विक्रय के लिए निर्धारित मापदंड पर ठेकेदारों को लाइसेंस दिए है, ताकि नियत स्थान से शराब बेची जा सके। लेकिन आबकारी विभाग की लापरवाही कहे या सांठगांठ से गांव की गलियों में अवैध शराब बिक्री हो रही है। इधर ठेकेदार ने स्वयं गांव-गांव डायरी रूपी लाइसेंस दे दिए है, जिसके चलते गांव में आसानी से शराब उपलब्ध हो रही है, जो कि छोटे छोटे बच्चों के हाथ से बिक रही है। शहर से बाहर किसी भी सड़क पर निकल जाइए रास्ते पर पड़ने वालेणहर गांव और सड़क किनारे स्थित दुकानों, ठाबों यहां तक कि चाय पान की गुमटियों में भी बड़ी सहजता के साथ शराब उपलब्ध हो जाती है। चाहे जिस ब्रांड की शराब मांगो उपलब्ध हो जाएगी फर्क सिर्फ इतना है कि शहर में दुकान से मिलने वाली शराब की अपेक्षा यह थोड़ी महंगी जरूर मिलती है लेकिन न मिले ऐसा मुमकिन नहीं है।
गुर्गों का आतंक कायम
आबकारी विभाग के लाइसेंसी शराब ठेकेदारों की तो बात ही और उनके गुर्गों का भी जगह-जगह दबदबा देखने को मिल जाता है। इतना ही नहीं अब तो दुकानों में बैठे ठेकेदार के गुर्गे सरे आम निर्धारित दर से अधिक दाम पर शराब बेचते और विरोध करने वाले लोगों के साथ मारपीट करते भी देखे जा रहे हैं इस प्रकार की घटना अभी हाल ही में जैतपुर में तथा इसके पूर्व शहडोल शहर के रेलवे फाटक के पास स्थित शराब दुकान में देखी जा चुकी है।
आतंक से परेशान ग्रामीण
गांव में आसानी से शराब मिलने के कारण ग्रामीण शराब का सेवन अधिक करने लगे है, जिससे छोटी-छोटी बात पर बहस होती है और बात लड़ाई झगड़े तक पहुंच जाती है. ग्रामीण शराबियों के आतंक से परेशान है. वहीं, गांव में गली-गली स्थित किराना दुकानों पर शराब की अवैध बिक्री से शाम के समय महिलाएं घर से बाहर निकलने में संकोच करती है. व अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है. साथ ही पुरुष शराब पीकर महिलाओं के साथ गाली-गलौज करते है. कई बार मारपीट भी करते है। ऐसे में घरेलु हिंसा और पारिवारिक विवाद भी बढ़ गए है।
चाहे जब बढ़ा देते हैं रेट
संभाग मुख्यालय की सभी शराब दुकानों के साथ ही बुढ़ार, धनपुरी, जयसिंहनगर, ब्यौहारी, बाणसागर सहित सभी लायसेंसी शराब दुकान ठेकेदारों की मनमानी पर विभागीय अधिकारी और अमले का कोई नियंत्रण नहीं है। ठेकेदार जब चाहे, जितना चाहे किसी भी ब्रांड के शराब की बिक्री दर बढ़ा देते हैं। जिले की विभिन्न लायसेंसी दुकानों के शराब विक्रय दर में एकरूपता भी नहीं है और प्रिंट रेट से अधिक दर पर शराब विक्रय तो जैसे ठेकेदारों का जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है। मदिरा प्रेमियों की समस्या यह है कि अपनी कमजोरी या गोपनीयता उजागर होने के डर से खुलकर विरोध भी नहीं कर पाते और सरेआम लुटने को मजबूर हैं।
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शासन द्वारा आबकारी विभाग के माध्यम से हर साल देशी विदेशी मदिरा दुकानों के संचालन का ठेका दिया जाता है। ठेकेदार का यह दायित्व होता है कि वह शासन द्वारा निर्धारित अपनी दुकान के दायरे में रहकर मदिरा प्रेमियों को उनकी पसंद के मुताबिक निर्धारित दर-पर मदिरा उपलब्ध कराए लेकिन मैदानी हकीकत यह है कि उक्त ठेकेदारों द्वारा सरकार के किसी भी नियम निर्देश का पालन समुचित ढंग से किया जाता है और न ही निर्धारित दर और मानक का पालन किया जा रहा है। जहां तक दुकान के दायरे में रहकर कारोबार करने की शर्त है उसको तो ठेकेदारों ने तशरीफ़ के नीचे दबा रखा है और सरे आम गांव-गांव पैकारियों के माध्यम से देसी विदेशी मदिरा का अवैध कारोबार किया जा रहा है। जिस पर न तो विभाग का कोई नियंत्रण है और न ही पुलिस का, खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
किराना दुकानों एवं गुमटियों पर
सरकार ने शराब विक्रय के लिए निर्धारित मापदंड पर ठेकेदारों को लाइसेंस दिए है, ताकि नियत स्थान से शराब बेची जा सके। लेकिन आबकारी विभाग की लापरवाही कहे या सांठगांठ से गांव की गलियों में अवैध शराब बिक्री हो रही है। इधर ठेकेदार ने स्वयं गांव-गांव डायरी रूपी लाइसेंस दे दिए है, जिसके चलते गांव में आसानी से शराब उपलब्ध हो रही है, जो कि छोटे छोटे बच्चों के हाथ से बिक रही है। शहर से बाहर किसी भी सड़क पर निकल जाइए रास्ते पर पड़ने वालेणहर गांव और सड़क किनारे स्थित दुकानों, ठाबों यहां तक कि चाय पान की गुमटियों में भी बड़ी सहजता के साथ शराब उपलब्ध हो जाती है। चाहे जिस ब्रांड की शराब मांगो उपलब्ध हो जाएगी फर्क सिर्फ इतना है कि शहर में दुकान से मिलने वाली शराब की अपेक्षा यह थोड़ी महंगी जरूर मिलती है लेकिन न मिले ऐसा मुमकिन नहीं है।
गुर्गों का आतंक कायम
आबकारी विभाग के लाइसेंसी शराब ठेकेदारों की तो बात ही और उनके गुर्गों का भी जगह-जगह दबदबा देखने को मिल जाता है। इतना ही नहीं अब तो दुकानों में बैठे ठेकेदार के गुर्गे सरे आम निर्धारित दर से अधिक दाम पर शराब बेचते और विरोध करने वाले लोगों के साथ मारपीट करते भी देखे जा रहे हैं इस प्रकार की घटना अभी हाल ही में जैतपुर में तथा इसके पूर्व शहडोल शहर के रेलवे फाटक के पास स्थित शराब दुकान में देखी जा चुकी है।
आतंक से परेशान ग्रामीण
गांव में आसानी से शराब मिलने के कारण ग्रामीण शराब का सेवन अधिक करने लगे है, जिससे छोटी-छोटी बात पर बहस होती है और बात लड़ाई झगड़े तक पहुंच जाती है. ग्रामीण शराबियों के आतंक से परेशान है. वहीं, गांव में गली-गली स्थित किराना दुकानों पर शराब की अवैध बिक्री से शाम के समय महिलाएं घर से बाहर निकलने में संकोच करती है. व अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है. साथ ही पुरुष शराब पीकर महिलाओं के साथ गाली-गलौज करते है. कई बार मारपीट भी करते है। ऐसे में घरेलु हिंसा और पारिवारिक विवाद भी बढ़ गए है।
चाहे जब बढ़ा देते हैं रेट
संभाग मुख्यालय की सभी शराब दुकानों के साथ ही बुढ़ार, धनपुरी, जयसिंहनगर, ब्यौहारी, बाणसागर सहित सभी लायसेंसी शराब दुकान ठेकेदारों की मनमानी पर विभागीय अधिकारी और अमले का कोई नियंत्रण नहीं है। ठेकेदार जब चाहे, जितना चाहे किसी भी ब्रांड के शराब की बिक्री दर बढ़ा देते हैं। जिले की विभिन्न लायसेंसी दुकानों के शराब विक्रय दर में एकरूपता भी नहीं है और प्रिंट रेट से अधिक दर पर शराब विक्रय तो जैसे ठेकेदारों का जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है। मदिरा प्रेमियों की समस्या यह है कि अपनी कमजोरी या गोपनीयता उजागर होने के डर से खुलकर विरोध भी नहीं कर पाते और सरेआम लुटने को मजबूर हैं।
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