फरियादी ही नहीं थाने में कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी हो रही परेशानी
" दुखियारी नारी, आखिर कहां जाए बेचारी, जब महिलाओं के थाने में बैठा हो पुरुष वर्ग का प्रभारी। हालांकि उद्देश्य बुरा नहीं था सरकारी, पर सरकारी मंशा पर भारी पड़ रहा प्रभारी। लोगों के सामने सवाल यह अनजाना, किस काम का ऐसा थाना जहां प्रभारी काम करे मनमाना? "
शहडोल। महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने में होने वाली परेशानी और जिल्लत से बचाने के लिए राज्य शासन द्वारा महिला थानों की स्थापना की गई है, ताकि महिलाएं निर्भय होकर अपनी व्यथा सुना सके अथवा कोई सूचना या शिकायत पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा सकें। शहडोल जिले में भी महिला थाना स्थापित है लेकिन महिलाओं के लिए स्थापित इस थाना का प्रभारी पुरुष पुलिस अधिकारी को बना दिए जाने के कारण थाने का औचित्य ही सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। फरियाद करने के लिए आने वाली महिलाएं तो ठीक, थाने में कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बिना प्रभारी की अनुमति के यह महिला कर्मचारी अपनी स्वेच्छा से कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं, सवाल यह उठता है कि महिला थानों की स्थापना के पीछे क्या यही मंशा थी?
प्राप्त जानकारी के अनुसार महिला थाना शहडोल इन दिनों पुरुष प्रभारी होने के कारण महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। रिपोर्ट दिखाना अथवा सख्त कार्यवाही होना तो दूर सामान्य सी सूचना या शिकायत लेने में भी महिला थाना गुरेज करता नजर आता है। इतना ही नहीं फरियादियों से उनकी समस्या सुनने या शिकायत लेने के बजाय उन्हें कहीं दूसरे थाने में, तो कहीं एसडीएम कोर्ट या न्यायालय जाने की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारी से पाला झाड़ने का भी प्रयास किया जाता है। इतना ही नहीं यदि कोई उनसे शिकायत या सूचना पत्र लेने का निवेदन भी करे तो यह कहा जाता है कि कानून सिखाने की जरूरत नहीं है जिससे शिकायत करना है, कर दो।
घंटों का इंतजार
प्राप्त जानकारी के अनुसार महिला थाना प्रभारी अपने कार्यालय में यदा-कदा ही बैठते हैं। उनकी अनुपस्थिति के दौरान यदि कोई फरियादी आ जाए अथवा किसी को कोई सूचना या शिकायत लिखित तौर पर देनी हो तो उसे घंटों इंतजार करना पड़ता है। इतना ही नहीं यह जरूरी नहीं है कि उसकी शिकायत या सूचना स्वीकार कर ही ली जाए। ऐसा ही एक मामला शनिवार को सामने आया जब समीपस्थ ग्राम छतवई की एक महिला अपनी देवरानी के संबंध में सूचना देने आई तो थाने में मौजूद पुलिस के कर्मियों द्वारा शिकायत लेने से इनकार कर दिया गया।
एएसपी ने दिए निर्देश
शिकायत नहीं लिए जाने की जानकारी मिलने पर मीडिया से जुड़े लोगों द्वारा थाना प्रभारी श्री रावत को फोन कर उनसे निवेदन किया गया कि शिकायत प्राप्त कर ले और उसे पावती दे दें तो श्री रावत ने यह कहते हुए मन कर दिया कि यह दूसरे थाना क्षेत्र का मामला है इसलिए वहां जाकर दें अथवा एसडीएम कार्यालय में जाकर अपनी सूचना दे दें। थाना प्रभारी के इस जवाब के बाद मीडिया से जुड़े कुछ लोग महिला थाना पहुंचे और वहां मौजूद पुलिस कर्मियों से व्यक्तिश: आग्रह भी किया लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था। तब पुलिस अधीक्षक को फोन लगाया गया लेकिनसंभवत: व्यस्तता वश वह फोन नहीं उठा पाए तब अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को फोन किया गया और उनके इस निर्देश पर कि किसी सूचना लेने में कोई बुराई नहीं है, सूचना प्राप्त कर पावती दे दो तब उक्त महिला की शिकायत थाने में स्वीकार की गई।
रोज का धंधा
शनिवार को सूचना या शिकायत देने आई महिला का कार्य तो पत्रकारों के हस्तक्षेप से अधिकारी के निर्देश पर हो गया लेकिन रोजाना सामान्य तौर पर आने वाली फरियादी महिलाओं के साथ किस प्रकार का बर्ताव महिला थाने में मौजूदा प्रभारी और उनके अधीनस्थ अमले द्वारा किया जाता होगा इस बात का खुलासा भी हो गया। सवाल यह उठता है की क्या महिला थाना ऐसे प्रभारी की मनमानी पूर्ण कार्यशाली के लिए खोला गया है या पीड़ित वर्ग की महिलाओं की व्यथा सुनकर आवश्यक कार्यवाही के लिए? यदि महिला थाना प्रभारी श्री रावत का यही रवैया रहा और उन्हें महिला खाने से अन्य स्थानांतरित कर महिला थाना प्रभारी की नियुक्ति नहीं की गई तो इस प्रकार की शिकायतें आए दिन मिलती ही रहेंगी जो पुलिस और शासन प्रशासन की छवि दोनों करने के लिए पर्याप्त होगी।
जिले के संवेदनशील पुलिस कप्तान से मांग की गई है कि महिला थाना में किसी जिम्मेदार और संवेदनशील महिला पुलिस अधिकारी की प्रभारी के रूप में नियुक्ति की जाए ताकि महिला थाने में आने वाली महिलाओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो और उन्हें छोटी-मोटी शिकायत या सूचना के नाम पर यहां वहां भटकने के लिए मजबूर न किया जा सके।
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