रंग- बिरंगे कागज के टुकड़ों की ओट में खाकी नहीं देख रही गुड्डा का अड्डा
महानगरों को पीछे छोड़ रहा उपनगर सोहागपुर का कबाड़ी
शहडोल। आजकल कबाड़ माफिया के रूप में एक नया नाम बहुत तेजी से चर्चित हो रहा है। शहडोल नगर के उपनगर सोहागपुर में भूसा तिराहा के पास ठीहा बनाकर बैठे कबाड़ के इस नए खिलाड़ी ने वर्षों से अपनी पैठ बनाए पुराने शातिरों को भी पीछे छोड़ दिया है। हालात यह हैं कि पुराने शातिर खिलाड़ी भी अब गुड्डा नामक नवोदित कबाड़ माफिया के इशारे पर नाचने लगे हैं। कबाड़ के गोरखधंधे का जाल बिछाने में माहिर गुड्डा ने शहडोल, बुढार, धनपुरी, अमलाई से लेकर अनूपपुर और कोतमा तक अपना साम्राज्य फैला लिया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि उपरोक्त स्थानों में जो कबाड़ी पहले से आधिपत्य रखते थे वह भी अब नवोदित कबाड़ी गुड्डा की उंगलियों पर नाच रहे हैं। यानी कहां का माल किसके ठीहे पर उतरेगा और किस ठीहे का माल कहां बेचा जाएगा यह सब गुड्डा ही तय करता है। सूत्रों की मानें तो जिले में जितने भी कबाड़ के ठीहे चल रहे हैं वह सभी नियम कानून का पालन नहीं कर रहे। वहां व्हीकल्स को भी स्क्रैप में काट दिया जाता है जबकि इसके लिए लाइसेंस जरूरी है।अब तो सरकार भी व्हीकल्स को स्क्रैप में कटवाने पर वाहन स्वामी को रियायत देने लगी है। किन्तु शहडोल जिले में कबाड़ कारोबारी मनमर्जी से वाहनों को स्क्रैप में काट रहे हैं।
कैसे बड़ा हो गया गुड्डा
सूत्र बताते हैं कि यह सब सेटिंग का खेल है। गुड्डा ही नहीं बल्कि सभी कबाड़ी जानते हैं कि इस गोरखधंधे में नुकसान से बचना है तो पुलिस को सेट करना जरूरी है। बस सेटिंग के इस खेल में गुड्डा ने शहडोल सहित पड़ोसी जिलों में भी पुराने खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया और सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में उभर आया। खासतौर से सोहागपुर थाना में तो इसी का सिक्का चलता है।
पीठ पर किसका हाथ
बताया जाता है कि गुड्डा कबाड़ी को सबसे मजबूत संरक्षण सोहागपुर थाना ने दिया हुआ है। वैसे भी वर्तमान थाना प्रभारी के कार्यकाल में सोहागपुर थाना जितना अधिक बदनाम हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ। अवैध खनिजों का परिवहन, जुआ, सट्टा और कबाड़ के कारोबारियों के लिए सोहागपुर थाना प्रभारी किसी देवदूत से कम नहीं हैं जो किसी तपस्या से नहीं बल्कि गांधी की आमद से प्रभावित होकर वरदान दे देते हैं।
राम भरोसे उम्मीदें
जिले के कई थाना क्षेत्रों में जिस प्रकार से अवैध गतिविधियां चल रही हैं उसे देखते हुए अब अमन पसंद लोगों की उम्मीदें सिर्फ विभागीय कप्तान यानी रामजी पर टिकी हुई हैं। वैसे भी जहां केदारनाथ और रामजी की परोक्ष प्रभुसत्ता हो वहां कथित तौर पर अवैध गतिविधियों की कल्पना भी नहीं की जाती। लेकिन जब भक्त ही भगवान की आंखों में धूल झोंकने लगें तो फिर भगवान को जागना ही होगा।


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