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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

प्रत्याशियों की जीत में रोड़ा, कहीं बागी तो कहीं सहभागी का

विधानसभा चुनाव में पल- प्रतिपल बदलना है समीकरण 

असर दिखाएंगे ही- कहीं बाई, तो कहीं बबुआ और नहीं तो लगुआ-भगुआ

शहडोल जिले में सियासी व्यूह रचनाकारों के समक्ष कम नहीं हैं चुनौतियां


(अनिल द्विवेदी)
शहडोल। राष्ट्रीय राजनीतिक जंग का सेमीफाइनल कहे जाने वाले विधानसभा चुनाव 2023 में सभी राजनीतिक दलों द्वारा विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा लगभग कर दी गई है। नाम  निर्देशन पत्रों के दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और निर्वाचन अभ्यर्थी, उनके समर्थक व पार्टी नेता-कार्यकर्ताओं ने प्रचार भी शुरू कर दिया है। चुनाव की तैयारी में सभी लोग जुटे हुए हैं कोई निष्पक्ष निर्वाचन करने की तैयारी में जुटा है तो कोई अपने प्रत्याशी को जिताने और विरोधी को हराने की जुगत में लगा हुआ है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी ही पार्टी या प्रत्याशी को सबक सिखाने के उद्देश्य से हराने की आंतरिक तौर पर कोशिशें में लगे हुए हैं। किसके प्रयास को किस हद तक सफलता मिलेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल शहडोल जिले की तीनों विधानसभा सीटों में अपना भाग्य आजमा रहे उम्मीदवारों के लिए विधानसभा पहुंचने की राह आसान नहीं दिख रही है। कहीं बाई, कहीं बबुआ, कहीं नेताओं के पीछे लगे रहने वाले लगुआ-भगुआ, कहीं बागी, तो कहीं सहभागी सभी अपने-अपने स्तर पर इस प्रयास में जुटे हुए हैं कि उनकी अपेक्षाओं और उम्मीद को धूल धूसरित करने वाले पार्टी या नेताओं को सबक सिखाना ही है। बागियों का विरोध और सहभागियों की नई पुरानी गतिविधियों का मौजूदा चुनाव जो क्या असर पड़ेगा यह निर्वाचन अभ्यर्थी के चुनावी भविष्य का भी निर्धारण करेगा।
तीन विधानसभा क्षेत्र का जिला
प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दलों भारतीय जनता पार्टी एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शहडोल जिले के तीनों विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी गई है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ निर्दलीयों के भी मैदान में उतरने की संभावना बरकरार है। उधर ब्यौहारी क्षेत्र से नव राष्ट्रीय राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के बागी हो चुके पूर्व विधायक को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के पश्चात मौजूदा स्थिति में जिले की तीनों ही विधानसभा सीटों के चुनाव संघर्षपूर्ण होंगे कोई भी उम्मीदवार या पार्टी एक तरफ जीत की उम्मीद नहीं कर सकता है और नहीं किसी पार्टी या उम्मीदवार को कमतर आंका जा सकता है।
जयसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र
जिले की जयसिंहनगर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार श्रीमती मनीषा सिंह हो या कांग्रेस के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह मरावी दोनों ही जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। श्रीमती मनीषा सिंह के पास भारतीय जनता पार्टी के व्यापक जनाधार के साथ ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा है, तो वहीं दूसरी ओर जिला पंचायत के अध्यक्ष रह चुके नरेंद्र सिंह मरावी के पास भी कांग्रेस पार्टी के जनाधार के अलावा अपने खुद की व्यक्तिगत छवि और जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में अर्जित लोकप्रियता का सहारा है। दोनों ही उम्मीदवार चुनाव जीतने के प्रति पूर्ण आशान्वित हैं लेकिन जैसा कि अन्य सभी चुनावों में उम्मीदवारों के साथ होता है इन बीजेपी, कांग्रेस के उम्मीदवारों के साथ भी कुछ कमजोर कड़ियां देखी जा रही है जो उन्हें कहीं ना कहीं नुकसान पहुंचा सकती हैं।
मनीषा के लिए कौन बाधक
श्रीमती मनीषा सिंह जैतपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रही हैं और उनके जैतपुर के कार्यकाल के दौरान भाजपा के कार्यकर्ता व उनसे जुड़े हुए लोग ही नहीं अधिकारी कर्मचारी भी काफी हद तक नाखुश पाए जाते रहे हैं। उसकी मुख्य वजह थी बबुआ की ठेकेदारी। बताया जाता है कि श्रीमती मनीषा सिंह के अति करीबी सिपहसालार बबुआ ठेकेदारी का काम तो करते ही हैं राजनीति की ठेकेदारी भी करने लगे और इस बात को लेकर काफी लोगों के मन में असंतोष पनपा है, यह असंतोष मौजूदा चुनाव में श्रीमती मनीषा सिंह के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्रीमती फूलवती 'बाई ' का विरोध और बगावत भी मनीषा सिंह के विजय मार्ग की एक बड़ी बाधा हो सकती है क्योंकि जिले की सर्वोच्च निर्वाचित संस्था की पदाधिकारी होने के साथ ही बाई के साथ स्वसहायता समूह से जुड़ी हजारों महिलाओं का सीधा संपर्क है हो सकता है यह संपर्क चुनाव के दौरान और भी प्रगाढ़ हो जाए और भाजपा उम्मीदवार के लिए नुकसानदायक साबित हो।
नारेंद्र मरावी के लिए खतरा
जय सिंह नगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह मरावी को कांग्रेस नेताओं एवं पदाधिकारियों द्वारा पत्रकारों के समक्ष रूबरू करा कर उन्हें एक शक्तिशाली और जनाधार वाला नेता निरूपित किया गया है लेकिन जमीनी हकीकत पर गौर करें तो नरेंद्र सिंह मरावी के साथ भी कुछ कमजोरी जुड़ी हुई है। हालांकि युवाओं में उनकी अच्छी पकड़ है लेकिन अन्य वर्गों में वह लोकप्रियता देखने को नहीं मिलती है। जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए उनके द्वारा किए गए कुछ कार्यों को लेकर जनता के बीच यह चर्चा भी आ चुकी है कि वह नेता तो हैं लेकिन पिछलग्गूपन के शिकार नेता है जिसका लोग चुनाव जीतने के बाद अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं उनके मन में यह आशंका भी है कि क्या नरेंद्र सिंह मरावी स्व विवेक और स्व निर्णय के आधार पर कार्य कर पाएंगे।
जयकरण का दांव
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के ही नेता और उम्मीदवार के रूप में टिकट की दावेदारी कर चुके जयकरण सिंह भी नारेंद्र सिंह मरावी की राह का अरोड़ा साबित हो सकते हैं विधानसभा उम्मीदवार न बनाए जाने से आहत उक्त आदिवासी नेता अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश जरूर करेंगे ऐसा माना जाता है यदि कांग्रेस पार्टी में सहभागी नेता जयकारण बागी नेता की भूमिका निभाते हैं तो नरेंद्र सिंह मरावी के जीत की राह काफी हद तक कठिन हो जाएगी। जयकरण सिंह के अलावा कांग्रेस के वह नेता जो अपने चाहतों को टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत रहे हैं क्या वह भी मन वचन कर्म से नरेंद्र सिंह मरावी का साथ दे पाएंगे यह सवाल भी कम महत्वपूर्ण नहीं है तात्पर्य यह है कि जयसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र के दोनों ही उम्मीदवार ऑन के साथ अच्छाइयों के साथ कुछ कमजोरियां भी जुड़ी हुई है देखना यह है कि किस प्रत्याशी की अच्छाई या कमजोरी किस हद तक अपना असर दिखा पाती है।
जैतपुर विधानसभा क्षेत्र
जैतपुर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव भी इस बार अपेक्षाकृत अधिक संघर्ष पूर्ण हो सकता है। जैतपुर क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने कई बार विधायक रह चुके जय सिंह मरावी को जयसिंहनगर क्षेत्र से उठाकर अपना उम्मीदवार घोषित किया है। हालांकि श्री मरावी जयसिंहनगर से पहले जैतपुर क्षेत्र से ही तीन बार चुनाव जीत चुके हैं और यह उनका गृह क्षेत्र भी है। उनकी लोकप्रियता और मिलनसारिता से पूरा जिला परिचित है। उधर कांग्रेस पार्टी ने भी श्री मरावी का मुकाबला करने के लिए बुढार जनपद पंचायत की तीन बार अध्यक्ष रह चुकी कांग्रेस नेत्री उमा सिंह धुर्वे को अपना उम्मीदवार बनाया है। सन 2018 के चुनाव में श्रीमती उमा सिंह धुर्वे ने भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी थी। लोगों का तो यहां तक कहना है कि यदि साजिश ना हुई होती तो उमा सिंह धुर्वे चुनाव जीत ही चुकी थी ऐसी हालत में जैतपुर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव संघर्षपूर्ण माना जा रहा है।
क्या बदल गए  मरावी
जैतपुर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार पूर्व मंत्री व विधायक जयसिंह मरावी की लोकप्रियता और मिलन सरिता का भले ही कोई जवाब नहीं है लेकिन उनके साथ जुड़े और उनके लिए काम करने वाले लोगों की कथित गतिविधियां जयसिंह मरावी की स्थिति पर व्यापक असर डालती प्रतीत हो रही है। जैतपुर क्षेत्र के ही लोगों का मानना है कि श्री मरावी अब वह पुराने जयसिंह मरावी नहीं रह गए जो आम आदिवासी जनता अधिकारी कर्मचारी एवं अन्य वर्गों के लोगों के लिए हमेशा उठ खड़े होते थे लोगों का सहयोग करते थे और किसी का उन्होंने कभी नुकसान नहीं चाहा। ऐसा माना जाता है कि पिछले कार्यकाल के दौरान विधायक जय सिंह मरावी के साथ कुछ ऐसे लोगों का समूह है जो जनता और विधायक के बीच कड़ी बनने के बजाय अवरोध बनते रहे हैं। कोई भी व्यक्ति अगर विधायक से मिलने पहुंचा तो उसे रोक कर पहले अपने स्तर पर उसे डील करने और उसके बाद विधायक तक पहुंचने देने की प्रक्रिया से लोगों में काफी हद तक असंतोष पनपा है और यह असंतोष जैतपुर विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी के लिहाज से श्री मरावी के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। इसके अलावा जय सिंह नगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहने के दौरान अपने करीबी छूट भैया नेताओं की सलाह पर स्वेच्छानुदान जनसंपर्क राशि के वितरण में जो गड़बड़ियां देखने को मिलीं वह वह भी क्षेत्र के लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है जिसका काफी असर मौजूदा चुनाव पर पढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
क्या टक्कर दे पाएंगी उमा
जैतपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की उम्मीदवार घोषित की गई बुढार जनपद क्षेत्र की जनप्रिय नेत्री उमा सिंह धुर्वे, भाजपा उम्मीदवार जय सिंह मरावी के मुकाबले के लिए तैयार हैं। जय सिंह मरावी जैसे बड़े, लोकप्रिय और मिलनसार नेता को श्रीमती सुश्री उमा धुर्वे सही मायने में टक्कर दे पाएंगी इस बात को लेकर लोगों में अलग-अलग राय हैं। क्षेत्रीय मतदाताओं के एक वर्ग का मानना है कि सुश्री उमा एक दबंग जनप्रिय और संघर्षशील नेत्री हैं वह जैतपुर निर्वाचन क्षेत्र में किसी भी नेता को कड़ी टक्कर देने में तो समर्थ हैं ही आसानी के साथ चुनाव भी निकाल सकती हैं, यदि पिछले चुनाव में कुछ कथित गड़बड़ियां न हुई होती तो उमा धुर्वे चुनाव जीत ही चुकी थीं। वही एक दूसरे वर्ग का कहना है कि सिर्फ जनपद अध्यक्ष बन जाना ही पर्याप्त नहीं है जय सिंह मरावी की उम्र उनका अनुभव मिलन सारिता और लोकप्रियता के मुकाबले उमा सिंह धुर्वे अभी मुकाबले में नहीं दिखती है जय सिंह मरावी बड़ी आसानी से चुनाव जीत सकते हैं। हालांकि उमा धुर्वे ने अपने अध्यक्ष यह कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में काफी कार्य किए हैं और चुनावी जमीन भी तैयार की है जिसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता की चुनाव एक तरफ है सुश्री उमा धुर्वे जय सिंह मरावी को कड़ी टक्कर देंगे और मतगणना होने तक कोई भी व्यक्ति दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि चुनाव जैतपुर विधानसभा क्षेत्र से कौन जीतेगा।
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक शरद जुगलाल कोल पर विश्वास जताते हुए उन्हें एक बार फिर पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है, जबकि कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवार को बदलते हुए पूर्व में विधायक रहे रामपाल सिंह के स्थान पर राम लखन सिंह को अपना अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया है ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा और कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे दोनों ही उम्मीदवार युवा और लोकप्रिय नेता माने जाते हैं वैसे भी ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के मतदाता काफी जागरूक माने जाते हैं और यहां चुनावी समीकरण बड़ी तेजी के साथ बनते बिगड़ते रहने की अपनी एक परंपरा रही है। भाजपा और कांग्रेस के साथ ही नवोदित राष्ट्रीय राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी ने भी क्षेत्र के पूर्व विधायक रामपाल सिंह को टिकट देते हुए ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में एंट्री मारी है। आप प्रत्याशी रामपाल सिंह पुराने नेता व पूर्व विधायक हैं उनकी उम्मीदवारी और हार जीत की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता है मौजूदा परिवेश में व्यवहारी विधानसभा में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन रही है।
ब्यौहारी मे त्रिकोणीय संघर्ष...
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के मौजूदा विधायक भाजपा उम्मीदवार शरद जुगलाल कोल को पार्टी ने कथित तौर पर कड़ी अग्नि परीक्षा के बाद अपना उम्मीदवार घोषित कर तो दिया है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए चुनाव के नतीजा किसके पक्ष में जाएंगे यह कहा नहीं जा सकता है विधायक शरद कॉल जिला पंचायत के सदस्य रहने के साथ ही युवा विधायक के रूप में लोकप्रिय नेता माने जाते हैं उन्होंने युवाओं विशेष का आदिवासी युवाओं का मां और विश्वास जीता है हालांकि कुछ कार्यों और गतिविधियों को लेकर क्षेत्र में विरोध की स्थिति भी बनी है जो चुनाव में उनके लिए काफी हद तक नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर सकती है फिर भी अपेक्षाकृत देखा जाए तो शरद जगलाल कल एक लोकप्रिय अनुभवी युवा नेता हैं और क्षेत्र की जनता का उन्हें समर्थन प्राप्त हो रहा है उधर कांग्रेस के उम्मीदवार राम लखन सिंह भी एक युवा उच्च शिक्षा प्राप्त आदिवासी नेता है जिनकी अपनी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है क्षेत्रीय मतदाताओं के रुझान को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा क्षेत्र में इस बार कड़ी टक्कर हो सकती है राम लखन सिंह के साथ ही रामपाल सिंह की मैदान में मौजूदगी जहां एक और कांग्रेस के लिए नुकसानदायक दिख रही है तो वही इस त्रिकोणीय संघर्ष से भाजपा या कांग्रेस किसको फायदा मिलेगा यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन रामपाल सिंह की उम्मीदवारी कुछ तो गुल खिलाएगी ऐसा लोगों का डर विश्वास है।

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