शिव पुराण में शंखचूड़ और अंधकासुर दैत्य वध की कथा का वाचन
श्री विष्णु भगवान का भक्तजन ने किया अभिषेक
शहडोल। श्री राम जानकी मंदिर सोहागपुर में आयोजित श्री शिव महापुराण की कथा में कथा व्यास पं. डाॅ. रामकिशोर द्विवेदी 'शास्त्री' ने भगवान शिव द्वारा शंखचूड़ दानव और दैत्यराज अंधकासुर के वध की कथा का वर्णन किया। शास्त्री जी ने बताया कि शंखचूड़ दानव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था जबकि अंधकासुर श्रीशिव-पार्वती का पुत्र था। कथावाचन के पूर्व मंदिर प्रांगण में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का सामूहिक अभिषेक किया गया जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने सहभागिता निभाई।
शंखचूड़ (दानव)
शंखचूड़ दानव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था, जिसे राधा ने दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। सुदामा श्रीकृष्ण का पार्षद था, जब श्रीकृष्ण विरिजा के साथ विहार कर रहे थे, सुदामा भी उनके साथ ही था। राधा को ज्ञात हुआ तो रुष्ट होकर वहाँ पहुँचीं। उसने कृष्ण को बहुत फटकारा। लज्जावश विरिजा तो नदी बन गई, किन्तु सुदामा ने क्रुद्ध होकर राधा से बात की। राधा ने क्रोधवश उसे सभा से निकाल दिया और दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया। क्षणिक आवेग जब समाप्त हुआ तो राधा ने दयावश शाप की अवधि गोलोक के आधे क्षण की कर दी, जो कि मृत्यु लोक का एक मन्वंतर होता है। शापवश सुदामा शंखचूड़ नामक दानव हुआ।
देवताओं से युद्ध
गोलोक में भी शंखचूड़ तुलसी पर आसक्त था, अत: भूलोक में भी उसने तुलसी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उसके पास हरि का मंत्र और कवच भी थे। तुलसी से विवाह होने के उपरान्त वह ऐश्वर्यपूर्वक रहने लगा। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से शिव ने उस पर आक्रमण किया। शिव की अपरिमित सेना (जो कि देवताओं तथा भगवती से युक्त थी) के होते हुए भी शंखचूड़ परास्त नहीं हो रहा था। सब ने विचारा कि जब तक उसके पास हरि का मंत्र और कवच हैं और उसकी पत्नि पतिव्रता है, तब तक उसे परास्त करना असम्भव है।
शंखचूड़ वध
सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। शिव मृत देवताओं को पुनर्जीवन देते जा रहे थे। रणक्षेत्र में दानेश्वर शंखचूड़ से एक वृद्ध ब्राह्मण भिक्षा मांगने के लिए आया। राजा ने इच्छित दक्षिणा मांगने को कहा, तो ब्राह्मण ने उससे कवच मांग लिया। शुखचूड़ ने उसे कवच दे दिया। ब्राह्मण ने तुरन्त ही शंखचूड़ का सा रूप धारण किया और तुलसी के पास गया। उसने माया पूर्वक तुलसी में वीर्याधान किया। तत्काल शिव ने हरि के दिये शूल से शंखचूड़ को मार गिराया। दानेश्वर तो रथ सहित भस्म हो गया, किन्तु किशोर सुदामा ने गोलोक धाम में राधा-कृष्ण को प्रणाम किया। शूल भी शीघ्रतापूर्वक कृष्ण के पास पहुँच गया। शंखचूड़ की अस्थियों से शंख जाति का उदभव हुआ। शंख से सभी देवताओं को जल देते हैं, किन्तु शिव को उसका जल नहीं दिया जाता है
शिव पुत्र अंधकासुर
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। वहां पर भगवान शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे। उसी समय पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। दुनिया को बचाने के लिए शिव ने अपनी तीसरी आँख खोल दी, जिससे संसार में पुनः रोशनी बहाल हो गई। लेकिन उसकी गर्मी से पार्वती को पसीना आ गया। उन पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ। उस बालक का मुंह बहुत बड़ा था और भंयकर था। उस बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से उसका नाम अंधक रखा गया। कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया। अंधक असुरों के बीच ही पला बढ़ा और आगे चलकर असुरों का राजा बना।
अंधक ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान मांग लिया था की वो तभी मरे जब वो यौन लालसा से अपनी माँ की और देखे। अंधक ने सोचा था की ऐसा कभी नहीं होगा क्योकि उसकी कोई माँ नहीं है। वरदान मिलने के बाद अंधक देवताओं को परास्त करके तीनो लोकों का राजा बन गया। फिर उसे लगा की अब उसके पास सब कुछ है इसलिए उसे शादी कर लेनी चाहिए। उसने तय किया की वो तीनो लोकों की सबसे सुन्दर स्त्री से शादी करेगा। जब उसने पता किया तो उसे पता चला की तीनो लोकों में पर्वतों की राजकुमारी पार्वती से सुन्दर कोई नहीं है। जिसने अपने पिता का वैभव त्याग कर शिव से शादी कर ली है। वो तुरंत पार्वती के पास गया और उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा। पार्वती के मना करने पर वो उसे जबरदस्ती ले जाने लगा तो पार्वती ने शिव का आह्वान किया।
पार्वती के आह्वान पर शिव वहां उपस्थित हुए और उसने अंधक को बताय की तुम पार्वती के ही पुत्र हो। ऐसा कहकर उन्होंने अंधक का वध कर दिया।


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