हरियाली को निगल रहीं आरा मशीनें - Blitztoday

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शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

हरियाली को निगल रहीं आरा मशीनें

काली कमाई और टैक्स चोरी का जरिया बना टिम्बर व्यवसाय

आखिर कहां जाती हैं कोयलांचल क्षेत्र की बेसकीमती लकडिय़ां

शहडोल। लकड़ी माफिया, वन विभाग से सांठगांठ कर लाइसेंस की आड़ में आरा मशीनें संचालित कर हरियाली का विनाश कर रहे हैं। कभी कभार शिकायतों के बाद वन विभाग के अधिकारी कार्रवाई कर पल्ला झाड़ लेते हैं। आरा मशीनों के संचालन से बिना परमिट के वन माफिया लगातार हरे-भरे फलदार वृक्षों पर आरा चला रहे हैं। न सिर्फ निजी स्वामित्व की आराजी बल्कि रिजर्व फरेस्ट एरिया से भी हरे वृक्षों का कत्लेआम कर लकड़ी माफियाओं द्वारा  धड़ल्ले से अपनी दुकानदारी चलाई जा रही है और वन विभाग मूक दर्शक की भूमिका निभाता नजर आ रहा है। गौर तलब है कि उच्च न्यायालय द्वारा निजी स्वामित्व की आराजी से काटे गए पेड़ों की आरा मिल संचालकों द्वारा खरीदी प्रतिबंधित की गई है, बावजूद इसकेधड़ल्ले से गरीब किसानों के जमीन में लगे पेड़ों को औने-पौने दामों में खरीद कर अवैध कारोबार किया जा रहा है।

संभाग मुख्यालय सहित पूरे जिले के जितने भी आरा मिल संचालक हैं, उनमें से कुछ ने तो अपनी दुकानें समेट ली लेकिन जो अभी इस कारोबार में हैं वह सरकारी नियम कायदों को ताक पर रखकर जंगलों के सफाये के साथ ही गांव-गांव में अपने गुर्गे तैनात कर निजी स्वमित्व की आराजी में लगे फलदार वृक्षों एवं इमारती लकड़ी वाले वृक्षों का सरेआम कत्लेआम कर रहे हैं। यही वजह है कि वन विभाग से लकड़ी की खरीदी किये बिना भी उनकी आरा मिलों को कच्चे माल की कभी कमी नहीं होती है। 

नियम-कायदे जेब में

 वन माफिया वन विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कर लगातार हरियाली को उजाडऩे में जुटे हैं। जिले में अवैध रूप से संचारित आरा मशीनों पर शिकायतों के बाद कभी कभार खानापूर्ति के लिए विभाग कार्रवाई की जाती है। लेकिन मानकों के अनरूप लाइसेंस की आड़ में संचालित आरा मशीनों पर विभाग की कभी नजर नहीं जाती। यहां पर मौजूद लकड़ी का न तो परमिट होता है और न ही लकड़ी खरीदी का कोई लेखा-जोखा। आरा मशीनों पर चिराई करने के बाद दूसरे क्षेत्रों में ट्रकों या अन्य वाहनों से लोड कर भेजी जाने वाली लकड़ी की ट्रांजिट परमिट का होना अनिवार्य है, लेकिन वन विभाग की आरा मशीनों पर मेहरबानी के चलते टीपी बेमानी होकर रह गया है। यह मेहरबानी कहीं न कहीं विभागीय अमले की निष्ठा पर सवाल उत्पन्न करता है। इसके अलावा एसईसीएल की खदानों में स्थित पेड़ों की लकडिय़ां आखिर कहां जाती हैं और किन नियमों के तहत कौन ले रहा है यह भी एक रहस्य बना हुआ है।

खरीदी- बिक्री की जांच अनिवार्य

जिले के कुछ एक आरा मिलों के संचालकों को अपवाद मान लिया जाए तो अधिकांश लकड़ी की ठेकेदारी कर रहे हैं। कोयलांचल क्षेत्र में संचालित एक ही परिवार की तीन आरा मशीनों के संचालक तो लकड़ी और फर्नीचर के बहुत बड़े सप्लायर माने जाते हैं। इन आरा मिल संचालकों को लकड़ी कहा से मिलती है, वह कितनी लकड़ी वन विभाग से खरीदते और साल में कितनी लकड़ी के दरवाजे, खिड़की और फर्नीचर की सप्लाई करते हैं यदि इस बात की जांच कराई जाए तो वन विभाग की सांठ-गांठ से लकड़ी माफियाओं के बड़े गोरख धंधे का पर्दाफाश हो सकता है। जानकार सूत्रों का मानना है कि यदि दस वर्षों में आरा मिल संचालकों , विशेषकर कोयलांचल की आरा मिलों द्वारा वन विभाग से की गई लकड़ी खरीदी और बेची गई लकड़ी उत्पादों की जांच कराई जाए तो एक बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।

लाखों की टैक्स चोरी

जानकार सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार आरा मिल संचालकों द्वारा वाणिज्य कर के रूप में शासन को मिलने वाली राजस्व की सरेआम चोरी की जा रही है। बताया जाता है कि संबंधित विभागीय अधिकारी-कर्मचारी आपसी सांठ-गांठ के चलते आरा मिल संचालकों द्वारा दी गई जानकारी की सत्यता की पुष्टि कर स्वयं तो उपकृत हो जाते हैं और खामियाजा शासन को  भुगतना पड़ता है। धनपुरी की लकड़ी फर्म द्वारा पूरे एसईसीएल एवं अन्य बड़ी कंपनियों को लकड़ी के सामानों की उत्पादों की आपूर्ति की जाती है, यदि उक्त फर्म की लकड़ी खरीद और बिक्री की जांच कराई जाए तथा अन्य आरा मशीनों की खरीदी-बिक्री की जांच वाणिज्य कर विभाग द्वारा ईमानदारी से की जाए तो लााखें रुपये की कर चोरी उजागर हो सकती है।

अधिकारियों का संरक्षण

सूत्रों की मानें तो आरा मशीनों के दम पर लकड़ी माफिया बन चुके इन कारोबारियों की विभागीय कार्यालयों में अच्छी पकड़ है। डीलिंग क्लर्क और अधिकारी को उपकृत कर, मैदानी अमले को अपने मोह जाल में फंसा लेने में माहिर इन कारोबारियों को विभागीय संरक्षण प्राप्त हो जाने से उन पर कोई कार्यवाही भी नहीं हो पाती है। यदि कभी किसी शिकायत पर कार्यवाही का अवसर आया भी तो कागजी घोड़े छौउ़कर मामले को शांत कर दिया जाता है।

कार्यवाही की दरकार

लकड़ी माफिया बन चुके आरा मशीन संचालकों की गतिविधियों एवं उनके द्वारा किये जा रहे काले-पीले की जांच जिले के पर्यावरण की सुरक्षा तथा शासन को हो रही क्षति के मद्देनजर नितांत आवश्यक है। स्थानीय नागरिकों जनप्रतिनिधियों ने वन विभाग, वाणिज्यकर विभाग एवं पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों से आरोपों की निष्पक्ष जांच कर दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाहीकी मांग की गई है।


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