मंडन, खंडन, मुंडन, उत्पीड़न और सोंटरंजन
(अनिल द्विवेदी)सुशासन और स्वच्छ प्रशासन के मौजूदा दौर में कोई भी प्रशासक या अधिकारी यह नहीं चाहता की उसके क्षेत्राधिकार वाले प्रशासन में किसी प्रकार का कोई दाग लगे, यही वजह है कि जब कोई विरोधी स्वर या समाचार किसी भी माध्यम से सामने आता है तो वह उसका पुरजोर तरीके से खंडन करने की कोशिश करता है। कुछ प्रशासकों ने तो अपने अधीनस्थ अधिकारियों को विधिवत निर्देश जारी कर रखा है कि जब भी कभी कोई विरोधी खबर आए तो उसका खंडन अवश्य करें ताकि लोगों को वस्तु स्थिति का ज्ञान हो सके। सूचना या समाचार के खंडन के दौरान संबद्ध प्रशासनिक अधिकारी पूरे मामले को ही सिरे से नकारने की कोशिश कर बैठता है और वहीं से शुरू होता है मंडन के खंडन,मुंडन, उत्पीड़न और सोंटरंजन का क्रम जो निरंतर जारी रहता और कई लोगों को तो बर्बादी के कगार पर पहुंचा देता है।
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति का अधिकार दिया है जिसका भरतपुर उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि किसी को जानबूझकर दुख पहुंचाया जाए या उसे अपमानित अथवा प्रताड़ित किया जाए। इसी प्रकार किसी भी घटनाक्रम गतिविधि कस्बा समाचार का खंडन करते समय तथ्यों को नहीं तोड़ा मरोड़ा या नष्ट किया जाना चाहिए अन्यथा समस्याएं तो दिनों दिन बढ़ती ही चली जाती हैं।
मंडन
जब भी कहीं कोई घटनाक्रम होता है वहां किसी न किसी पत्रकार अथवा उसके सूत्र की उपस्थिति अवश्य ही होती है। घटना बुरी भी हो सकती है और अच्छी भी, मामला भ्रष्टाचार का हो सकता है या सदाचार का अथवा किसी नेता अधिकारी या जनसामान्य के लिए उपलब्धि पूर्ण अथवा नुकसानदायक भी हो सकता है। ऐसी किसी भी घटना दुर्घटना अच्छी या बुरी गतिविधियों को लोगों को विशेषकर शासन प्रशासन के सामने लाना पत्रकार का जाए तो होता है। अपने इस दायित्व को निभाने के दौरान एक पत्रकार या सूत्र घटना को मूलतः प्रस्तुत करने के बजाए उसे रोचक बनाने के लिए समाचार को सजाता है अर्थात मंडन की प्रक्रिया को पूर्ण करता है और मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया के माध्यम से जन जन तक पहुंचाता है। घटनाक्रम, गतिविधि अनियमितता अथवा अनाचार को सार्वजनिक करने के पूर्व पत्रकार उससे संबंधित जानकारी एकत्र करता ही है इसके लिए कई बार उसे जोखिम भी उठाना पड़ता है, कभी-कभी तो समाचार अथवा तथ्य संकलन के दौरान पत्रकार अथवा सूत्र को बद से बदतर हालात का सामना करना पड़ता है तब कहीं जाकर किसी खबर का अथवा भ्रष्टाचार का महिमामंडन हो पाता है। ऐसे हालात में जब कोई अधिकारी घटनाओं और तथ्यों को सिरे से नकारने की कोशिश करता है तो तकलीफ तो होती ही है। और यह सवाल स्वता ही ही उत्पन्न होने लगता है कि आखिर कितने गिर गए हैं लोग जो सत्य को नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं।
खंडन
यदि प्रशासनिक गतिविधियों की समालोचना आवश्यक है तो भ्रांतियों को दूर किया जाना भी उतना ही आवश्यक है स्वच्छ प्रशासन की अवधारणा ही यही है कि लोगों को वस्तु स्थिति से अवगत कराया जाए। शासन प्रशासन अथवा संबंधित व्यक्ति द्वारा किसी भी मामले में स्पष्टीकरण दिया जाना या भ्रामक खबरों का खंडन किया जाना उतना ही आवश्यक है जितना सोने को निखारने के लिए उसको तपाना जरूरी है। सच को सामने लाना सिर्फ पत्रकारों का ही नहीं प्रशासन और संबंधित व्यक्तियों का देता है तो है लेकिन अपना दामन बचाने के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाना या तथ्यों, प्रमाणों गायब ही कर देने का प्रयास किया जाना निहायत गलत है। किसी भी खबर या सूचना का खंडन किया जाना एक सामान्य प्रक्रिया है देखें खंडन के नाम पर भ्रष्टाचार अथवा अनियमित गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना उचित नहीं है। खंडन करता को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि मंडन करने वाला बिना प्रमाण के खबरों की प्रस्तुति नहीं देता इसके बाद भी यदि खंडन के नाम पर मामले को सिरे से नकारने का प्रयास किया जाता है तो फिर पत्रकार या सूचना दाता के पास खंडन का मुंडन करने के अलावा कोई विकल्प ही कहां से रह जाता है।
मुंडन
खंडन करने वाला व्यक्ति चाहे वह नेता हो अधिकारी हो व्यापारी हो भ्रष्टाचारी या जो भी हो मौका मिलते हैं किसी भी समाचार या सूचना का खंडन करने से चूकता नहीं है। खनन की प्रक्रिया के दौरान वह न तो अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश करता है, और ना ही उसे यह याद रह जाता है कि उसने जो गुल खिलाए उसे हजारों नंगी आंखों ने देखा है अथवा उसके करतूतों के चलते कितने ही लोग पीड़ित और प्रभावित हैं या उसे स्वयं भी कितना अपमानित और प्रसारित होना पड़ा है सिर्फ अधिकारी के कह देने से खंडन कर देना आफत को आमंत्रण देने से कम नहीं है। तमाम तथ्यों साक्षी और सच्चाई की रोशनी में सूचना या खबर का मुंडन करने वाला व्यक्ति और उसे देखने सुनने समझ में तथा महसूस करने वाले लोगों के सामने जब भी खंडन के रूप में लीपापोती की कोशिश नजर आती है तो अनायास ही मुंडन की प्रक्रिया भी शुरू होने लगती है मुंडन अर्थात खंडन के बाद तथ्यों साथियों और कारगुजारी के प्रमाण के प्रस्तुतीकरण के साथ खंडन का खंडन, फिर खंडन, फिर मुंडन और खंडन मुंडन की इस प्रक्रिया के बाद कब उत्पीड़न का दौर शुरू हो जाए कहा नहीं जा सकता है।
उत्पीड़न
आधुनिक समय में कोई किसी से कमजोर तो है नहीं चाहे वह नेता हो, अधिकारी हो, व्यापारी हो, जन सामान्य हो, पत्रकार हो सब के सब अपने आप को सक्षम ही मानते हैं। समाचार मंडल खंडाला और मुडन के बाद संबंधित अधिकारी नेता या जो भी हो करतूतों को उजागर करने वाले पत्रकार अथवा उसके सूत्र को परेशान बा उत्पीड़न का शिकार बनाने की कोशिश भी करने लगता है कई बार तो से झूठे अपराधिक मामलों में फंसा दिया जाता है अथवा उसके घर परिवार के लोगों को परेशान और भयभीत किया जाता है ताकि वह सूचना या समाचार के प्रसार पर रोक लगाई जब उत्पीड़न का दौर शुरू होता है तो निश्चित रूप से लोगों को अनेक अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ऐसे हालात में पीड़ित पत्रकार सूत्र या उनसे जुड़े वह लोग जो संबंधित घटना दुर्घटना भ्रष्टाचार से पीड़ित होते हैं लामबंद होकर दोषी व्यक्ति अथवा खंडन करता जो भी हो उसे दंडित करने यह सोच भंजन करने पर विवश होते हैं और इसके भी कई माध्यम बन जाते हैं।
सोटरंजन
चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो या नेता अथवा कोई और जब अपने खिलाफ या अपने सिस्टम के खिलाफ समाचारों के प्रकाशन से खिन्न होकर संबंधित पत्रकार सूत्र या सूचना दाता को पीड़ित और परेशान करता है तब दूसरे पक्ष को यही लगता है कि इसका क्या इलाज किया जाए या तो वह न्यायालय की शरण में जाता है या समाज के शरण में और तब न्यायालय अथवा समाज संबंधित अधिकारी नेता या जो भी दोषी व्यक्ति है उसे दंडित करने की प्रक्रिया शुरू करता है। दंड अथवा पिटाई को सोंटरंजन कहा जाता है और समाचार या कोई भी घटनाक्रम मंडल खंड में मुंडन उत्पीड़न के बाद सोंटरंजन तक पहुंच जाता है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
वास्तव में पत्रकार या सूचना दाता भी कभी-कभी अतिरेक वर्ष तिल का ताड़ बना डालते हैं अथवा समाचार प्रस्तुति में कहीं चूक हो जाती है या नहीं भी होती है तो सच्ची बात गलत करने वाले अधिकारी नेता या प्रशासक को चुभती तो है ही ऐसे हालात में थोड़े संयम की जरूरत तो है खबर मंडल के समय एहतियात बरतना आवश्यक है इसी प्रकार खंडन के दौरान भी एहतियात जरूरी है ऐसा ना हो कि खंडन के नाम पर सच्चाई को ही विलुप्त करने की कोशिश की जाए यदि ऐसा हुआ तो मुंडन उत्पीड़न और सुरंजन की प्रक्रिया तो अवश्यंभावी ही है।


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