गुड खाय, गुलगुला से परहेज
(अनिल द्विवेदी)
शहडोल। देसी कहावत है "गुड़ खाय, गुलगुला से परहेज"। गुलगुला गुड़ और आटे को मिलाकर बनाई जाने वाली देसी मिठाई है जो पहले गांवों में बड़े चाव से बनाकर खाई जाती थी। इस पुरानी देसी कहावत को जिला प्रशासन में बखूबी चरितार्थ कर दिखाया है। विश्वव्यापी कोरोना महामारी से सुरक्षा के उद्देश्य से लगाए गए कोरोना कर्फ्यू एवं लॉकडाउन के लंबे दौर के बाद आमजन को राहत देने के लिए धीरे-धीरे पाबंदियों में छूट देने का सिलसिला केंद्र व राज्य शासन के निर्देशानुसार आरंभ हुआ। केंद्र सरकार ने राज्यों को यह अधिकार दिया कि वह आवश्यकता एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए आपदा प्रबंधन समिति से परामर्श कर प्रतिबंधों को धीरे धीरे समाप्त करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाएं। राज्य शासन ने समय-समय पर आदेश निर्देश भी जारी किए लेकिन हर आदेश में जिला स्तरीय आपदा प्रबंधन समिति की महत्ता को स्वीकार करते हुए उक्त समिति के परामर्श के आधार पर कार्यवाही किए जाने का प्रावधान बना दिया जिसका उचित या अनुचित लाभ जिले में बैठे अधिकारियों द्वारा उठाया जाता रहा है।
मध्य प्रदेश के ही कई जिलों में लॉकडाउन पूरी तरह समाप्त हो चुका है बाजारों के खुलने का समय भी लगभग प्रतिबंध मुक्त हो गया है सिवाय शहडोल जिले के। दूसरे जिलों में आपदा प्रबंधन समिति और उसके सदस्यों की क्या भूमिका है यह तो पता नहीं लेकिन ऐसा लगता है कि शहडोल जिले में आपदा प्रबंधन समिति का मतलब कलेक्टर शहडोल है। आपदा प्रबंधन समिति के सदस्य क्या कहते हैं उनकी क्या राय है प्रतिबंधों में कटौती किए जाने के संबंध में आपदा प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा दिए जाने वाले सुझावों को अपेक्षाकृत कम ही महत्व मिलता रहा है जिले के मुखिया ने जो बोल दिया वही जिले के लिए कानून बन गया। यही वजह है कि अन्य सभी जिलों की भांति शहडोल जिले के व्यावसायिक प्रतिष्ठान पूर्ववत खुल पाने की स्थिति में नहीं है शाम ढली और पुलिस का डंडा घुमाना शुरू। आमतौर पर बड़े मजे ले व्यापारी तो अपनी शटर गिरा कर साइड बिजनेस कर लेते हैं लेकिन छिटपुट व्यापारी हाथ ठेला चालक कुंती वाले इनको बेवजह पुलिस के डंडों का शिकार होना पड़ता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शहडोल जिला प्रवास के बाद अपर कलेक्टर अर्पित वर्मा को शहडोल जिला कलेक्टर का प्रभाव नीला और उन्होंने राज्य शासन के निर्देश पर चौपाटी खोले जाने का निर्देश जारी कर दिया। चौपाटी किसी भी शहर का ऐसा स्थान है जहां तकरीबन सबसे ज्यादा भीड़ होती है। लंबे लॉकडाउन के बाद तो लोग भारी संख्या में चौपाटी की ओर दौड़ लगा रहे ऐसा लगता है कि पिछले 1 महीने से इन्होंने कुछ खाया पिया ही नहीं और अपनी भूख मिटाने के लिए चौपाटी जल्दी से जल्दी पहुंचने के लिए प्रयासरत हैं। सवाल यह उठता है कि जब शासन प्रशासन ने रात में चौपाटी खोलने का फरमान जारी कर दिया तो सामान्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर पाबंदी लगाने का क्या औचित्य है। शहर की अन्य सभी दुकाने 7:00 बजे बंद हो जाएं और सिर्फ चौपाटी रात के 10:00 बजे तक खुले तो स्वाभाविक है कि शहर की सारी भीड़ तो चौपाटी में ही जमा हो जाएगी फिर कोरोना नियमों का पालन सोशल डिस्टेंसिंग का क्या होगा यदि चौपाटी के साथ ही बाजार की अन्य दुकानें भी खुली होती तो शायद भीड़ बट भी जाती जिला प्रशासन का यह निर्णय कहीं से भी व्यवहारिक नजर नहीं आता है।
आम शहरी विशेषकर महिला वर्ग कुछ चौपाटी मैं खाना पीना बहुत अच्छा लगता है ऐसे हालात में जब एक लंबे समय के बाद चौपाटी खुली तो अतिरिक्त भीड़ का जुटना अवश्यंभावी है जिला प्रशासन को चाहिए कि चौपाटी तो खोलें अन्य दुकानों के खुलने पर शाम 7:00 बजे से पुलिस द्वारा डंडा फटकार में की व्यवस्था पर भी रोक लगाई जाए और नाइट कर्फ्यू लगने के 1 घंटे या 2 घंटे पूर्व तक चौपाटी या अन्य सभी दुकानें बंद करने के आदेश जारी कर दिए जाएं तो शायद लोगों को ज्यादा सहूलियत मिल सकेगी।


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