" धनार्जन हि परमो धर्म:"
(अनिल द्विवेदी)
विराट भूमि पर अब तक कई विराट व्यक्तित्व वाले अधिकारी-कर्मचारी आए, कुछ चले गए कुछ यहीं के होकर रह गए लेकिन ऐसा कोई भी अधिकारी कर्मचारी नहीं मिला जिसने अपने मूल दायित्वों का (भले ही कुछ प्रतिशत ही सही) निर्वहन न किया हो। मौजूदा समय में जिले के चंद अधिकारियों ने वर्षों पुराने इस मिथक को ध्वस्त कर दिया है, इन विभाग प्रमुखों ने अपने मूल शासकीय दायित्व को तिलांजलि देकर सिर्फ एक ही कार्य को प्राथमिकता देने की नई परंपरा की शुरुआत की है। अगर इनकी कार्यपद्धति का विश्लेषण किया जाए तो एक ही निष्कर्ष निकल कर सामने आता है और वह है 'धनार्जन हि परमो धर्म:।' अर्थात दानदाता ठेकेदारों के उपकार तले दबे इन अधिकारियों का एक ही फॉर्मूला लोगों के सामने दृष्टव्य है 'अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जिम्मेदारी और जनता।' आदिवासी बहुल शहडोल जिले में हालांकि कई ऐसे अधिकारी हैं लेकिन हम सिर्फ 3 नाम से आपका परिचय कराना चाहेंगे जो इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे हैं उनके विभाग हैं खनिज, आबकारी और प्रदूषण नियंत्रण। यह तीन ऐसे विभाग हैं जो पुलिस की बैसाखी के सहारे खड़े हैं और काम के बजाय सिर्फ दाम के फार्मूले पर केंद्रित है।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दिनेश चंद्र सागर एवं नवागत कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य के पदभार ग्रहण करने के साथ ही राजस्व एवं पुलिस विभाग की संयुक्त टीम ने रेत के अवैध उत्खनन एवं परिवहन के विशाल कारोबार को ध्वस्त करते हुए माफियाओं पर नकेल कसने की जो सख्त कार्यवाही की है वह अविस्मरणीय और अनुकरणीय मानी जा सकती है। जिले से लेकर राजधानी तक सशक्त मैनेजमेंट का दंभ भरने वाली ठेकेदार कंपनी वंशिका और उसके संरक्षण में रेत का अवैध उत्खनन व परिवहन करने में लगे तथाकथित नेताओं वाहन मालिकों तथा अन्य जुड़े हुए लोगों के विरुद्ध इतनी बड़ी कार्यवाही इसके पहले तक नहीं हुई है। कार्यवाही वास्तव में काबिले तारीफ है लेकिन उसने कई सवालों को जन्म दिया है उनमें एक सवाल यह भी है कि इसके पूर्व तक ऐसी कार्यवाही क्यों नहीं हो सकी और जिले में पदस्थ खनिज अधिकारी और अमला आखिर कहां व्यस्त है।
एक्साइज: महुआ दिखता है, अंगूर नहीं
रेत खनन एवं परिवहन के अवैध कारोबार पर हाथ डाले जाने के दौरान ही पुलिस बल द्वारा भारी मात्रा में अंग्रेजी शराब का जखीरा बरामद किया है। अवैध शराब एवं नशा के अवैध कारोबार को रोकने की दिशा में अब तक जितनी भी कार्यवाही जिले में हुई है वह सब के सब पुलिस विभाग द्वारा की गई हैं। यूं तो शराब एवं मादक पदार्थों के अवैध कारोबार को रोकने और अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए शासन द्वारा जिले में आबकारी विभाग के अधिकारी कर्मचारियों की तैनाती भी की गई है लेकिन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों को शराब के अवैध कारोबारी दिख ही नहीं पाते हैं। ऐसा नहीं है कि आबकारी विभाग कोई कार्यवाही नहीं करता है कार्यवाही तो बहुत होती हैं लेकिन सिर्फ उन गरीब आदिवासी परिवारों पर जो महुआ की कच्ची शराब बनाकर पीते या बेचते हैं। चूंकि गांव में महुआ की देसी कच्ची शराब किसी ठेकेदार के माध्यम से नहीं बनाई जाती इसलिए आबकारी विभाग के मैदानी अमले को अवैध कच्ची शराब पकड़ने और बेचने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने में कभी कोई परेशानी नहीं होती है। गाहे-बगाहे जब कभी आबकारी अमले द्वारा कच्ची शराब गांव में जाकर पकड़ी भी गई तो फटाफट फोटो खिंचवा कर आबकारी अधिकारी विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में वायरल कर देते हैं और यह मान बैठते हैं पूरी मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने वाली आम जनता उनकी मुरीद होकर रह जाएगी और कोई भी उनसे यह सवाल नहीं कर पाएगा की अंग्रेजी शराब ठेकेदारों के अवैध जगीरो और गली-कूचे तक में फैली अवैध पैकारियों पर जिला आबकारी अधिकारी और उनकी टीम की नजर आखिर क्यों नहीं पड़ रही है। ऐसे हालात में क्या लोगों की यह धारणा गलत साबित हो सकती है कि शराब ठेकेदार की नजर आने में विभाग को धृतराष्ट्र की भूमिका निभाने पर मजबूर कर दिया है? क्या सिर्फ गरीब आदिवासी परिवारों द्वारा बनाई जाने वाली महुए की कच्ची शराब पकड़ना ही विभागीय अमले का शासकीय दायित्व है, बड़े ठेकेदारों की कारगुजारीयों पर पर्दा डालते रहना आखिर किस नियम निर्देश का हिस्सा है।
माइनिंग: ठेकेदार ज़िंदाबाद
आदिवासी बहु शहडोल जिले में एक अलग ही परंपरा चल पड़ी है। लगभग हर विभाग की अपनी जिम्मेदारी है जो अधिकारी कर्मचारियों को निभानी पड़ती है लेकिन यहां तकरीबन हर विभाग के कचरे को साफ करने की जिम्मेदारी देशभक्ति जन सेवा में लीन पुलिस विभाग को उठानी पड़ रही है ऐसे कई विभाग के अधिकारी कर्मचारी पुलिस के रहमों करम पर ही जिंदा है और सिर्फ अपनी निजी कमाई में व्यस्त रह कर बेवजह पुलिस बल को नित नई जिम्मेदारियों में उलझाते रहते हैं। ऐसा ही विभाग है शहडोल जिले का खनिज विभाग। जिले में खनिज अधिकारी के साथ ही मैदानी अमला भी तैनात है जो सिर्फ रेत ठेकेदारों से वसूली तक ही सीमित होकर रह गया है। इसके अलावा पत्थर, कोयला, मुरूम की अवैध खदानें, ईट भट्टों का संचालन करने वाले लोगों के साथ ही गौण खनिजों का परिवहन करने वाले ग्रामीण ट्रैक्टर मालिकों से हफ्ता महीना वसूलने को ही अपना परम कर्तव्य मान बैठे हैं। विभागीय सेवा में रत किसी भी ठेकेदार की कितनी भी बड़ी अवैध गतिविधियां हो विभाग के कर्ताधर्ता ओं को नजर ही नहीं आती है। विभिन्न पुलिस थानों में तैनात बल द्वारा पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी के निर्देश पर की जाने वाली छापामार कार्यवाही ओं के साथ ही हाल ही में टिहकी, सौता एवं पोंड़ी में राजस्व एवं पुलिस विभाग की संयुक्त टीम द्वारा की गई कार्यवाही ने दो लोगों की इस आशंका पर पुष्टि की मुहर लगा दी है कि खनिज विभाग का अमला सिर्फ और सिर्फ अपनी झोली भरने तक ही सीमित होकर रह गया है।
पीसीबी: कब तक छिपेगी करतूत?
जिले की जीवनदायिनी सोन नदी ने रेत के अवैध उत्खनन एवं परिवहन के खिलाफ एडीजी देसी सागर कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य पुलिस अधीक्षक अवधेश कुमार गोस्वामी के निर्देशन में गठित संयुक्त कार्यवाही दल द्वारा की गई छापामार कार्यवाही एक और विभाग को बेनकाब किया है वह है पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण विभाग। पीसीबी के शहडोल कार्यालय में भी कई अधिकारी कर्मचारी मौजूद जिन्हें सिर्फ वही का प्रदूषण और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली गतिविधियां नजर आती है जहां से आमद सुनिश्चित न हो। किराना दुकानों होटलों मैं पॉलिथीन के उपयोग से बढ़ रहे प्रदूषण की चिंता तो पीसीबी के अधिकारियों को है सोन नदी में रेत खनन के लिए उपयोग की जा रही पोकलेन मशीन पनडुब्बी आदि भारी भरकम मशीनों के उपयोग से जलीय जंतु के जीवन पर मंडरा रहे संकट और पर्यावरण को लगातार पहुंचाई जा रहे क्षति से विभागीय अमले को कोई फर्क नहीं पड़ता है वास्तविकता यह है कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है कि मैनेजमेंट के नाम पर हजारों लाखों रुपए खर्च करने वाले ठेकेदार पर में वास्तव में कर क्या रही है। सिर्फ रेत खदान ही नहीं जिले में चल रहे तमाम उद्योगों खदानों ईट भट्ठा में पर्यावरण प्रदूषण की क्या स्थिति है इससे पीसीबी के अधिकारी कर्मचारियों को कोई लेना देना नहीं है लेना देना है तो सिर्फ हरे पत्तों से। ऐसे हालात में जिले की तस्वीर बद से बदतर नहीं होगी तो क्या होगा। अपनी करतूतों को छिपाने का अंदाज भी ऐसा कि मीडिया से जुड़े लोगों का सामना करने से भी परहेज, कोई मिलने जाए तो बदसलूकी पर आमादा, ऐसे अधिकारियों के नक्कारे पन से ही जिले के पर्यावरण को गंभीर खतरा बना हुआ है।
अब अकेले नहीं कप्तान
जिले में किसी भी तरह के अपराध को विशेषकर संगठित अपराधों पनपने से रोकने के लिए कृत संकल्पित जिले के पुलिस कप्तान अवधेश कुमार गोस्वामी ने अकेले ही नशा और अपराध को नियंत्रित कर अपराधियों को जमींदोज करने की मुहिम ठान रखी थी लेकिन लगता है कि अब ऐसा नहीं होगा। नवागत अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दिनेश चंद्र सागर का जोश खरोश और नवागत कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य की प्रशासनिक दक्षता न सिर्फ चौगुना जोश के साथ अपराध और अपराधियों को ठिकाने लगाने में सफल होगी बल्कि विभिन्न विभागों में कुंडली मारकर धनार्जन हि परमो धर्म: के सिद्धांत का पालन करने वाले अधिकारी कर्मचारियों की दशा और दिशा भी बदल सकेगी।
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