स्वेच्छानुदान राशि पाने वाले तो हैं, उनके पति या पिता हो गए लापता
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में भी स्वेच्छा अनुदान एवं जनसंपर्क निधि राशि में घोटाले की आशंकागरीबों और जरूरतमंदों को आकस्मिक आर्थिक मदद के लिए विधायकों को स्वेच्छानुदान व जनसंपर्क निधि जारी करने का अधिकार शासन की ओर से दिया गया है ताकि वह गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने के साथ ही खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकें लेकिन ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में तो स्वेच्छानुदान एवं जनसंपर्क मद की राशि के वितरण में सारे नियम कायदों को तिलांजलि दे दी गई। विधायक की अनुशंसा पर 375 लोगों को उक्त राशि का वितरण किया है जिनमें से 275 से अधिक नाम ऐसे हैं जिनकी वल्दियत (पिता या पति का नाम) तक का पता नहीं है। उक्त राशि किसे मिली, कौन हड़प गया इस बात की अगर जांच की जाए तो एक ही बात सामने आएगी... "ढूंढते रह जाओगे"
[Anil Dwivedi]
शहडोल। एक ओर प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में अपनी सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर प्रदेश की जनता को सरकार द्वारा लागू की गई जनकल्याणकारी योजनाएं और अपनी उपलब्धियां बताते नहीं थक रहे है, वहीं, दूसरी ओर जिले के ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के विधायक शरद जुगलाल कोल स्वेच्छा अनुदान राशि के बंदरबाट को लेकर सुर्खियों में है। अभी हाल ही में जयसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक जयसिंह मरावी द्वारा स्वेच्छानुदान राशि में चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी बांटने हुए बंदर बांट कराए जाने का मामला सामने आया था और अब इस पंक्ति में ब्यौहारी विधानसभा के विधायक भी आ चुके हैं।
पति/पिता सूची से लापता
स्वेच्छानुदान की राशि व्यापारियों, संपन्न वर्ग के लोगों ब्राह्मणों, बनियों और पटेलो को देने का मामला सामने आने के साथ ही विधायक द्वारा अनुसंसित सूची में जिन लोगों के नाम की अनुशंसा की गई है उनमें से लगभग 75 फ़ीसदी हितग्राहियों के पिता या पति का नाम तक सूची में दर्ज नहीं है जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि सुरक्षा अनुदान राशि वास्तविक जरूरतमंद और पात्र व्यक्तियों को देने के बजाय अपने चहेतों और पार्टी कार्यकर्ताओं को देकर शासन की इस महत्वपूर्ण एवं जनकल्याणकारी योजना की धज्जियां उड़ाई गई हैं और ऐसे लोगों को स्वेच्छानुदान की राशि बांट दी है, जिन पर स्वेच्छानुदान की राशि का हक ही नहीं बनता। ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में कोल समाज के लोगों की बहुलता है (स्वयं विधायक भी इसी समाज से आते हैं) जो निश्चित रूप से गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं स्वेच्छा अनुदान राशि की इस सूची में कोल समाज के लोगों का नाम दाल में नमक के बराबर ही देखने को मिला है।
दल बदलने वाले नेता
ब्यौहारी विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे शरद जगलाल कल पिछले चुनाव में भी भाजपा के उम्मीदवार बने और चुनाव जीतकर विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। हालांकि इसके पूर्व वह कांग्रेस के नेता हुआ करते थे और जिला पंचायत के सदस्य भी रहे हैं। पिछले कार्यकाल के दौरान जब मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार सत्ता में आई और विधायकों के दल बदलने का क्रम चला उस समय शरद जुगलाल कोल का नाम भी सुर्खियों में आया था और वह एक बार फिर कांग्रेस का दामन थामने ही वाले थे वह तो उस टाइम में भाजपा नेताओं की समझाइश काम आ गई और ब्यौहारी विधायक भाजपा में ही बने रहे परिणाम स्वरूप इस चुनाव में पार्टी ने उन पर पूरा विश्वास भी जताया है।
अपनों पर रहम, गरीबों पर...
दरअसल, मुख्यमंत्री स्वेच्छा अनुदान आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को देना होता है. विधायक की अनुशंसा पर पार्टी कार्यकर्ताओं व चहेते व्यापारियों को गरीब बता कर मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान दे दिया गया, जबकि इनमें से कुछ लोग लखपति और करोड़पति की हैसियत रखते है। व्यवहारी विधायक ने अपने चाहते व्यापारी साथियों व पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को चेहरा देखकर 25-25000 रुपए तक की राशि दिलाई है जबकि जरूरतमंद या ज्यादा घनिष्ठ न रहने वाले लोगों को दो हजार, पांच हजार रुपए की राशि स्वेच्छानुदान मद से दिए जाने की अनुशंसा की गई है। अपनों पर रहम गैरो पर सितम के फार्मूले को चरितार्थ करते हुए विधायक द्वारा क्षेत्र के तमाम गरीबों जरूरतमंदों की अनुदेगी किए जाने की क्षेत्र में काफी चर्चा है।
नियम के मुताबिक ये है प्रावधान
गरीब या जरूरतमंदों को आकस्मिक आर्थिक मदद के लिए विधायकों को स्वेच्छानुदान व जनसंपर्क निधि जारी करने का अधिकार दिया गया है। विधायक इसका इस्तेमाल जरूरतमंदों के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा खेल व सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न क्लबों व मंडलियों को उनके नाम से निधि जारी करने का अधिकार दिया गया है।
शासन के निर्देशों की भी अनदेखी
सरकारी राशि व्यय करने में शासन के निर्देशों की भी अनदेखी की जा रही है। नियमतः किसी भी व्यक्ति को शासकीय राशि का भुगतान किए जाने की स्थिति में उसका पूरा नाम, पता, बल्दियत आदि जानकारी ली जाती है। इसके अलावा स्वेच्छानुदान अथवा जनसंपर्क मद की राशि वितरित किए जाने के बाद उसकी उपयोगिता का प्रमाण पत्र भी जारी किए जाने का प्रावधान है। सवाल यह उठता है कि जब राशि प्राप्त करने वाले कथित हितग्राहियों की बल्दियत और संपूर्ण पता ही नहीं है तो आखिर विधायक ने उपयोगिता प्रमाण पत्र कैसे दिया और यदि उन्होंने प्रमाण पत्र दिया है तो वह किस हद तक सही हो सकता है, यह जांच का विषय बनता है।


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