- शिव पार्वती के विवाह में शामिल हुए श्रद्धालु
भक्तजन
- शिव पुराण कथा में श्री राम धाम में उमड़ी भक्तों की भीड़
शहडोल। श्री राम जानकी मंदिर सोहागपुर में आयोजित श्री शिव महापुराण की कथा में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह समारोह में शामिल श्रोता आस्था और श्रद्धा भक्ति भाव में डूबे रहे। श्रद्धालु भक्तों से खचाखच भरे श्री राम धाम परिसर में व्यास गद्दी पर आसीन पंडित डॉ राम किशोर द्विवेदी ने तारकासुर एवं शिव पार्वती विवाह की कथा का वर्णन कियाव कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह के अवसर पर भगवान शिव की बारात निकाली गई और शिव पार्वती विवाह का उपक्रम भी किया गया जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु महिला पुरुषों ने सहभागिता निभाई और विवाह उपरांत पेपर खरी कर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया।
व्यास डाॅ. द्विवेदी बताया कि शिव विवाह की चर्चा हर पुराण में मिलेगी। भगवान शंकर ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। यह विवाह बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि सती के पिता दक्ष इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। हालांकि उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर सती का विवाह भगवान शंकर से कर दिया। राजा दक्ष द्वारा शंकरजी का अपमान करने के चलते सती माता ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था।
इसके बाद शिवजी घोर तपस्या में चले गए। सती ने बाद में हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसा उसे वरदान था लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए।
देवताओं के अनुरोध और माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर बाद में शिवजी ने पार्वतीजी से विवाह किया।
इस विवाह में शिवजी बरात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। कहते हैं कि शिवजी की बारात में हर तरह के लोग, गण, देवता, दानव, दैत्यादि कई थे। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे।
इस बारात को देखकर मता पार्वती की मां बहुत डर गई और कहा कि वह अपनी बेटी का हाथ ऐसे दुल्हे के हाथ में नहीं सौंपेगी। माता पार्वती ने स्थिति को बिगड़ते देखकर शिवजी से कहा कि वे हमारे रीति रिवाजों के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद शिवजी को दैवीय जल से नहलाकर पुष्पों से तैयार किया गया और उसके बाद ही उनकी शादी हुई।
विवाह के दौरान वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया परंतु जब शिवजी की वंशावली के बखान करने की बारी आई तो सभी चुप हो गए। बाद में नारदजी ने बात को संभाला और शिवजी के गुणों का बखान किया।



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