स्पीड ब्रेकर: जहां मन हो वहीं तान दो - Blitztoday

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

स्पीड ब्रेकर: जहां मन हो वहीं तान दो

हर घर के सामने पहाड़, जान बचाने का नहीं जुगाड़

शहडोल। सड़क पर धचके तो सबने खाए होंगे. बुरा तब ज्यादा लगता है जब ये धचके सड़क पर गड्ढों की बजाय उन स्पीड ब्रेकर से लगें, जो चमचमाती सड़कों पर जहां-तहां मिलते हैं। कहीं ये स्पीड ब्रेकर गाड़ी में बैठे-बैठे ऊंट की सवारी की याद दिलाते हैं, और कुछ ऐसे भी जिन पर से आपकी गाड़ी बिना हिचकोले खाए ही गुजऱ जाती है। भले ही आपने या आपकी गाड़ी चलाने वाले ने ब्रेक लगा दिए हों, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये कौन तय करता है कि स्पीड ब्रेकर फलानी जगह लगेगा या नहीं? धचके की तरह ही झटका शायद इस बात पर भी आपको लगे कि यहांं लगभग हर स्पीड ब्रेकर अनूठा है। शहर हो या गांव हर गली में एक दर्जन से लेकर सैकड़ा भर स्पीड ब्रेकर शासन-प्रशासन और कानून व्यवस्था कोमुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं लेकिन हुक्मरानों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

जो मानक एक सड़क को बनाने के हैं, स्पीड ब्रेकर को लेकर अमूमन न तो कोई वैज्ञानिक सोच है न आधार। क्या कोई मानकीकृत और आदर्श स्पीड ब्रेकर जैसी चीज होती है? संभाग मुख्यालय ही नहीं  आसपास के शहरों, जिलों या पूरे प्रदेश में एक आदर्श स्पीड ब्रेकर की खोज करनी शुरू की जाये, तो जो जवाब मिलगा, वे न तो साफ हैं और न ही  पूरे।

स्पीड ब्रेकर: कागज़ी, कानूनी और गैरकानूनी?

भारतीय सड़क कांग्रेस यानि आईआरसी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक एक आदर्श स्पीड ब्रेकर की ऊंचाई 10 सेंटीमीटर, लंबाई 3.5 मीटर और वृत्ताकार क्षेत्र यानी कर्वेचर रेडियस 17 मीटर होना चाहिए साथ ही ड्राइवर को सचेत करने के लिए स्पीड ब्रेकर आने से 40 मीटर पहले एक चेतावनी बोर्ड लगा होना चाहिए। स्पीड ब्रेकर का मकसद है गाडिय़ों की रफ्तार को 20 से 30 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंचाना ताकि सड़क हादसों के खतरे कम किये जा सकें. पर जो स्पीड ब्रेकर कागज़ पर हंै, वह सड़क पर शायद ही कहीं दिखाई दें।

जहां मन हो, वहीं तान दो


विशेषज्ञों के मुताबिक यूरोपीय देशों के रिहाइशी इलाकों में हर 80 मीटर की दूरी पर स्पीड ब्रेकर मौजूद होते हैं, जबकि अपने यहांं ऐसे कोई स्पष्ट मानक नहीं हैं। और जिसका जहां जैसे मन आया, गुजरती सड़क पर एक स्पीड ब्रेकर तान देता है। बहुत से स्पीड ब्रेकर रिहाइशी इलाकों में पाए जाते हैं, क्योंकि मुहल्ले के लोग आपस में तय कर लेते हैं और चार मज़दूरों को काम पर लगवा कर खड़ी ढाल सा स्पीड ब्रेकर बनवा देते हैं, जो न सिर्फ ग़ैर-कानूनी हैं बल्कि जानलेवा भी साबित हो रहे हैं।

हर घर के सामने ब्रेकर

सड़क बनवाने के लिए जितनी मारामारी करनी होती है, स्पीड ब्रेकर के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता है, लोग खुद ही अपने-अपने घर के सामने मिट्टी डालकर या सीमेंट कांक्रीट का पहाडऩुमा ब्रेकर खड़ाकर न सिर्फ अपनी व अपने परिवार को सुरक्षित  करने का भ्रम पाल लेते हैं बल्कि बठ़े छोटे वाहनों में चलने वालों को मौत के मुंह में धकेल कर सुख की अनुभूति करते रहते हैं।

दोनाली बंदूक है स्ट्रिपर 


आजकल सड़कों पर काले-पीले रबड़ के स्ट्रिप भी स्पीड ब्रेकर के रूप में दिखाई देते हैं। ये लगाने में आसान और सस्ते ज़रूर हैं, लेकिन इन्हें इतना कामयाब नहीं माना जाता है। वो इसलिए क्योंकि ये बहुत जल्दी ही घिसने लगते हैं और फिर सड़क पर रह जाती हैं तो इनकी कीलें, जो वाहनों के टायरों को चुभते हैं। यानि जो स्पीड ब्रेकर के रूप में रफ्तार रोकने के लिए बने थे, वही स्पीड ब्रेकर अब टायरों को पंक्चर करने के काम आ रहे होते हैं। यानि दोनाली बंदूक की भूमिका निभाते हैं ये स्ट्रिपर।

स्पीड ब्रेकर के तरफदार

रिहाइशी इलाकों में गैर-कानूनी ऊंचे-नीचे स्पीड ब्रेकर दिखाई देते हैं। चलती गाड़ी में धचके भले ही किसी को पसंद न आते हों, पर कुछ तकनीकी विशेषज्ञों के मुताबिक सड़क हादसों से बचने का उनसे बेहतर कोई उपाय नही।  लोगों का मानना है कि जान बचाने की कवायद में अगर कुछ ग़ैर-कानूनी भी करना पड़े, तो उसमें कुछ ग़लत नहीं है। स्पीड ब्रेकर का काम है जान बचाना, तो फिर उसके आकार और ऊंचाई से क्या फर्क पड़ता है भला? 

जिम्मेदार कौन?

दिक्कत ये है कि शासन-प्रशासन के विभिन्नविभागोंं के बीच आपसी तालमेल नहीं है जिसकी वजह से सड़क पर बनने वाले विभिन्न प्रकारों के स्पीड ब्रेकरों पर कोई नजऱ नहीं डाल रहा है। इसके अलावा लोग निर्धारित गति का पालन नहीं करते, जिसके चलते कभी-कभी लाल बत्ती से पहले, तो कभी फ्लाईओवरों के ऊपर भी स्पीड ब्रेकर लगाने पड़ते हैं, जो कि एक बेतुकी बात है। हालांकि लोक निर्माण विभाग यानी पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरिंग विभाग के लोगों की राय ये है कि सड़कों पर कम से कम स्पीड ब्रेकर होने चाहिए। लेकिन उनका कहना है कि जहां दुर्घटनाएं होने लग जाती हैं, वहां स्पीड ब्रेकर लगाने के अलावा कोई दूसरा समाधान ईजाद करना मुश्किल है। और फिर स्पीड ब्रेकर लगवाना इतना मुश्किल काम नहीं है। हां, अगर कानूनी रूप से बनवाना हो, तो ये ज़रूर एक मुश्किल काम है।

आदर्श स्पीड ब्रेकर के मानक

सरकारी तरीका तो ये है कि अगर किसी जगह स्पीड ब्रेकर की ज़रूरत महसूस की जाती है, (उदाहरण के तौर पर जहां दुर्घटनाएं बढ़ रही हों या होने की संभावना हो) तो ट्रैफिक पुलिस उस विभाग को आवेदन पत्र लिखती है जिसके अधिकार क्षेत्र में वो सड़क पड़ती है - जैसे कि नगरपालिका, पीडब्ल्यूडी, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि। आवेदन पत्र पर गौर किया जाता है और इंजीनियरों की सलाह के बाद उन्हें मंज़ूर या नामंज़ूर कर दिया जाता है। मतलब ये कि जो सड़क बनाते हैं, वे उसका ट्रैफिक कंट्रोल नहीं करते। तो ज़ाहिर है कि ज़्यादातर मामलों में ट्रैफिक पुलिस के सुझावों को पास कर दिया जाता है क्योंकि वे ट्रैफिक को कंट्रोल करते हैं। रिहायशी इलाकों के लोग इतने खुशकिस्मत नहीं हैं, जिसका नतीजा ये कि वे खुद ही कानून को हाथ में लेकर जहां-तहां स्पीड ब्रेकर बनवा देते हैं और खामियाजा भुगतते हैं इन सड़कों पर वाहन चलाने वाले ड्रायवर और वाहन सवार।

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