सफलता के लिए जरूरी है, व्यवधानों का निदान
संभाग में एक और बंदोबस्त की दरकार
(अनिल द्विवेदी)
शहडोल। संभागायुक्त शहडोल राजीव शर्मा के निर्देश पर शहडोल संभाग में चलाया जा रहा राजस्व सेवा अभियान वास्तव में एक अनुकरणीय पहल है, मंशा यही है कि लोगों की राजस्व से संबंधित तमाम समस्याओं का सुगमता पूर्वक, समयबद्ध निराकरण हो लेकिन अब तक के अनुभवों और पिछले अभियानों के नतीजों को देखकर लगता नहीं है कि राजस्व सेवा अभियान की मंजिल बहुत आसान है। यह मानना गलत नहीं होगा कि अभियान की सफलता के मार्ग में अनेकानेक व्यवधान हैं जब तक इन व्यवस्थागत व्यवधानों का निदान नहीं होता तब तक कोई भी अभियान जनता को प्रत्यक्ष लाभ नहीं पहुंचा सकता है।
मुख्यमंत्री ने किया था शुभारंभ
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शहडोल जिले के ग्राम जमुई से राजस्व सेवा एवं ग्राम सेवा अभियान का शुभारंभ किया। गौरतलब है कि कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा की पहल पर शहडोल संभाग मंे 1 जुलाई से राजस्व सेवा एवं ग्राम सेवा अभियान चलाया जा रहा है। राजस्व सेवा अभियान के अंतर्गत किसानो के राजस्व प्रकणों का अभियान चलाकर निराकरण किया जाएगा। वही ग्राम सेवा अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों मंे कोरोना टीकाकरण, पौध रोपण, हितग्राही मूलक योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन एवं ग्रामीण विकास संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जाएगा।
निष्क्रिय मैदानी अमला
राजस्व सेवा अभियान की सफलता विभागीय मैदानी अमले की कार्य पद्धति पर निर्भर है। पटवारी एवं राजस्व निरीक्षक जब तक अपने कार्य क्षेत्र में नियमित रूप से सक्रिय नहीं होंगे तब तक जन समस्याओं का अंबार लगा ही रहेगा। अपवादों को छोड़ दिया जाए तो आलम यह है कि कोई भी हल्का पटवारी अपने मुख्यालय या कार्य क्षेत्र के गांवों में रहना तो दूर महीनों पैर भी नहीं रखता है। कागजों में गस्ती घोड़े दौड़ते हैं, गिरदावरी घर में भरी जाती है और जन सामान्य को खसरा, खतौनी, नक्शा अथवा किसी भी प्रमाण पत्र के लिए प्रतिवेदन प्राप्त करने हेतु पटवारी के घर के चक्कर लगाने ही पड़ते हैं। कुल मिलाकर निष्क्रियता चरम पर है। इतना ही नहीं कुछ चढ़ोत्री भी निश्चित रूप से चढ़ानी पड़ती है। अभियान के नाम पर यदि मैदानी अमले को मजबूर कर एक हफ्ता या 1 महीने के लिए हल्के में भेज भी दिया गया तो क्या वह जिम्मेदारी और ईमानदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर पाएंगे यह सवाल उठना स्वाभाविक है।
कार्य में लापरवाही
राजस्व सेवा अभियान की सफलता के मार्ग में कई बाधाएं हैं जैसे समय पर गश्त का ना होना, गिरदावरी न भरा जाना, नक्शा तरमीम और सीमांकन समय पर न होना, हो भी जाए तो नक्शा या शासकीय अभिलेख का अद्यतन न होना, अधिकार क्षेत्र का विवाद जैसी तमाम समस्याएं हैं जो कहीं ना कहीं इस अभियान को प्रभावित करने का कार्य करेंगे। न सिर्फ शहर बल्कि गांवों में भी नक्शा दुरुस्त नहीं है कई गांवों के तो नक्शे ही गलत है जिसके कारण आए दिन भूमि स्वामियों के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होती है। संभाग मुख्यालय को ही लें तो आधे से अधिक शहर नजूल की भूमि पर बसा हुआ है शासन सौ-पचास साल से काबिल लोगों को बेदखल तो नहीं कर सकता है, तो उन्हें भू स्वामित्व ही क्यों नहीं दे दिया जाता जब तक रिकॉर्ड अपडेट नहीं होगा तो अभियान का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा।
अभिलेखीय गड़बड़ी
शहरी हो या ग्रामीण हर कहीं कुल राजस्व भूमि का एक बड़ा हिस्सा झुड़पी या छोटी झाड़ियों के जंगल के नाम पर दर्ज है जबकि वास्तव में वहां या तो आबादी बसी हुई है या व कायदे खेती हो रही है। सवाल यह उठता है कि अभिलेख और धरातल की वास्तविक स्थिति में इतना अंतर क्यों है आखिर मैदानी राजस्व अमला कर क्या रहा है यदि भूमि के स्वरूप अथवा उपयोग में बदलाव हुआ तो उसे अभिलेखों में दर्ज क्यों नहीं किया जाता। राजस्व विभाग का मैदानी अमला कुछ ले देकर शासकीय भूमि पर अतिक्रमण तो करा देता है लेकिन कब्जा दर्ज नहीं करता अथवा अतिक्रमण के मामले भी दर्ज नहीं करते बाद में वही अतिक्रमण और अभिलेखीय गड़बड़ी शासन प्रशासन के लिए परेशानी का सबब बन कर रह जाता है।
रिकार्ड सुधार में कोताही
जब भी कोई व्यक्ति भूखंड का करें अथवा विक्रय करता है तो विक्रय विलेख पंजीयन के बाद सबसे पहले भूमि का नामांतरण एवं नक्शा तरमीन का कार्य कराने को प्राथमिकता देता है। विभागीय अधिकारी कर्मचारी नामांतरण भी करते हैं नक्शा भी तरमीन हो जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि कंप्यूटर स्क्रीन में कोई भी खसरा नंबर ऐसा नहीं है जिसका बटांकन हुआ हो। प्रीता के पक्ष में नामांतरण हो जाने के बाद भी विक्रेता की कुल आबादी में से बिक्री सुधा आराजी अलग नहीं हो पाती या वह भी गई तो खसरा में तो बटन कन होता है नक्शे में उसे दर्ज नहीं किया जाता जो आए दिन सीमा विवाद का कारण बनता है। यदि पटवारियों को यह अधिकार और निर्देश दिए जाएं कि वह भूमि का नामांतरण या बटन कन करते समय नक्शे में भी उभय पक्षों की सहमति से बटन कन तत्काल करें तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है लेकिन फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
वर्षों से नहीं हुआ सुधार
संभाग मुख्यालय शहडोल की आधी से अधिक आबादी मध्यप्रदेश शासन की नजूल भूमि पर आबाद है एक बड़ा हिस्सा पुराने तालाबों पर आबाद है बावजूद इसके शासकीय अभिलेखों में समय अनुरूप संशोधन नहीं हुआ जिसके कारण शहर के बड़े बड़े धन्ना सेठ भी लाखों-करोड़ों की बिल्डिंग के मालिक हो गए लेकिन भूमि हीन ही हैं। राजस्व सेवा अभियान के तहत ऐसी बसाहट एवं परिवर्तित भूमियों के अभिलेखों में सुधार कर भविष्य में उत्पन्न होने वाले विवादों का पटाक्षेप किया जाना चाहिए।
नाम किसी का काम किसी का
राजस्व विभाग के आदेश निर्देश के तहत भूमि के सीमांकन और नक्शा तरमीन करने का अधिकार व कर्तव्य राजस्व निरीक्षक का है, भूमि स्वामियों द्वारा निर्धारित शुल्क अदा कर आवेदन किए जाने पर महीनों सालों बाद ही सही राजस्व निरीक्षक द्वारा भूमि का सीमांकन व नक्शा तरमीन किया तो जाता है लेकिन वह उसने ऑनलाइन सुधार नहीं कर सकता है वजह यह है कि राजस्व विभाग के पोर्टल का पासवर्ड या तो तहसीलदार के पास होता है या पटवारी के पास जबकि नक्शा सुधार का कार्य राजस्व निरीक्षक द्वारा किया जाता है लेकिन पोर्टल का पासवर्ड और सुधार का अधिकार न होने के कारण राजस्व निरीक्षक नक्शे में बटन कर नहीं कर सकता और पटवारी या तहसीलदार इसकी आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं जिसके कारण आए दिन क्षेत्राधिकार विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है।
बंदोबस्त के नाम पर खिलवाड़
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि शहडोल संभा जो पुराना शहडोल जिला भी है के बंदोबस्त के नाम पर तत्कालीन राजस्व अमले द्वारा काफी हद तक खिलवाड़ ही किया गया है आज भी ऐसे कई गांव हैं जिन का नक्शा बंदोबस्त के बाद से ही विवादित रहा है नसों में सुधार के लिए विभाग द्वारा कभी भी कवायद नहीं की गई। आलम यह है कि किसी भूमि स्वामी के नाम पर खतरे में दो एकड़ जमीन किसी एक खसरा नंबर पर है लेकिन नक्शे में वह 1 एकड़ ही बता रहा है सवाल यह है कि इस प्रकार की विसंगतियों को राजस्व सेवा अभियान के जरिए क्या दूर किया जा सकता है वास्तव में देखा जाए तो शहडोल संभाग को एक और बंदोबस्त की जरूरत है इस संबंध में जिला व संभाग के लोगों की अपेक्षा यह है कि संभागायुक्त शहडोल एक बार फिर बंदोबस्त कराए जाने की दिशा में सार्थक पहल करें।
करें भी तो कैसे
संभागायुक्त शहडोल द्वारा राजस्व सेवा अभियान की शुरुआत कर जो सराहनीय पहल की गई है उसकी सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संभाग के तीनों जिलों के राजस्व अमले को पूर्व की अपेक्षा अधिक सक्रिय और कर्तव्य निर्वहन के प्रति जिम्मेदार बनाया जाए। मैदानी अमले से भी विचार-विमर्श कर उन्हें अपेक्षित अधिकार दिए जाएं तभी मैदानी अमला पूरी जिम्मेदारी के साथ कार्य कर अभियान को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएगा।
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