जिले का यह कैसा विकास, भूख मिट रही, न प्यास
जहां प्रतिदिन सैकड़ों कर्मचारी कार्य करते हों और हजारों लोगों का आवागमन होता हो ऐसे स्थान पर एक अदद कैंटीन का न होना कितना कष्टप्रद होता है, इस बात का एहसास शायद शहडोल जिला प्रशासन को नहीं है। यह भी संभव है की कैंटीन न खोले जाने के पीछे कोई बड़ी वजह हो और जिला प्रशासन के साथ ही अन्य विभागीय वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जानबूझकर कैंटीन संचालन को टाला जा रहा हो लेकिन वास्तविकता यह है कि कैंटीन न होने के कारण नित्य प्रति हजारों लोगों को अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भोजन या नाश्ता तो दूर चाय और पानी के लिए भी लोगों को न सिर्फ भटकना बल्कि काफी दूर तक जाने के लिए विवश होना पड़ता है। इसके अलावा जिले व संभाग के रूप में शहडोल के विकास पर भी प्रश्नचिन्ह लगता नजर आ रहा है।Anil Dwivedi
शहडोल। संभाग मुख्यालय में ऐसे कई कार्यालय और संस्थान है जहां बड़ी संख्या में न सिर्फ अधिकारी-कर्मचारी कार्यरत हैं बल्कि उनके अलावा भी हजारों की तादाद में लोगों का आवागमन प्रतिदिन होता है लेकिन उनके खानपान की कोई व्यवस्था नहीं है। संयुक्त जिला कार्यालय यानि कलेक्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक कार्यालय, जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, रेलवे स्टेशन, डिग्री कॉलेज, गल्र्स कॉलेज, इंजीनियरिंग एवं पॉलिटेक्निक कॉलेज, बस स्टैंड आदि स्थानों पर कैंटीन न होने के कारण लोगों को या तो भूख प्यास को दबाकर अपना कार्य पूर्ण करना पड़ता है अथवा 100-200 मीटर दूर संचालित हाथ ठेला, टपरों में बिकने वाली खुली और गुणवत्ता हीन खाद्य सामग्री का उपयोग कर अपने ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना पड़ रहा है।
शहडोल में क्यों नहीं
संयुक्त जिला कार्यालय, संभाग आयक्त कार्यालय, मेडिकल कॉलेज, और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में कैंटीन की आवश्यकता क्यों है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। उमरिया, अनूपपुर और डिंडोरी जैसे छोटे तथा शहडोल संभाग मुख्यालय की अपेक्षा कम विकसित जिलों में भी कलेक्ट्रेट अथवा संयुक्त जिला कार्यालय परिसर में कैंटीन संचालित है, इसके अलावा महाविद्यालयों में भी कैंटीन संचालित हैं ताकि वहां आने वाले लोगों छात्र-छात्राओं को खाने पीने के लिए कहीं भटकना न पड़े और उनका धन एवं समय बर्बाद ना हो। यदि अन्य सभी जिलों विभागों और शैक्षणिक संस्थाओं में कैंटीन उपयोगी है तो शहडोल संभाग मुख्यालय में अनुपयोगी अथवा नुकसानदायक कैसे हो सकता है।
बाहर से आती है खाद्य सामग्री
जब कभी कलेक्ट्रेट सभागार में कलेक्टर द्वारा अधिकारियों की बैठक ली जाती है तो चाय नाश्ते का भी इंतजाम किया जाता है, वह आखिर कहां से आता है? किसी होटल से ही मंगाया जाता है, जो मीटिंग हाल तक आने में ठंडा हो चुका होता है। यदि यही व्यवस्था कलेक्ट्रेट परिसर में कैंटीन के माध्यम से हो तो समय की बचत के साथ ही गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री एवं चाय कॉफी भी उपलब्ध हो सकती है। बैठक के अलावा भी विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत सैकड़ों कर्मचारियों को प्रतिदिन चाय-नाश्ते के लिए जय स्तंभ से लेकर पुराना बस स्टैंड और तहसील कार्यालय तक भटकते हुए देखा जाता है। हालांकि वह चाय नाश्ते के बहाने थोड़ी तफरी भी कर लेते हैं लेकिन यदि उन्हें कलेक्ट्रेट परिसर में ही यह सुविधा उपलब्ध हो जाए तो बेवजह के भटकाव से मुक्ति तो मिल ही सकती है।
कहां जाएं मरीजों के परिजन
इसी प्रकार जिला अस्पताल में भी सैकड़ों नहीं हजारों की संख्या में लोगों का आवागमन होता है न सिर्फ शहर बल्कि पूरे जिले, संभाग और संभाग की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ प्रांत के लोगों का भी यहां उपचार के लिए आवागमन होता है। उपचार की लालसा में वह शहडोल जिला अस्पताल पहुंच तो जाते हैं लेकिन उन्हें खाने-पीने की सामग्री के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है इस बात का अनुमान न तो अस्पताल प्रबंधन लगा पा रहा है और न ही जिला प्रशासन। यदि अस्पताल के बाहर सड़क पर होटल और टपरे नहीं खुले होते तो मरीजों के परिजनों को एक गिलास पानी नसीब हो पाना भी कठिन होता है जिसका नजारा लॉकडाउन के दौरान कई बार देखा जा चुका है। जिला अस्पताल परिसर में पहले कैंटीन चालू थी पता नहीं क्यों अस्पताल प्रबंधन द्वारा उसे बार-बार बंद कर दिया जाता है। सवाल यह उठता है कि मरीजों के परिजन आखिर जाएं तो जाएं कहां? ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले परिजन विशेषकर महिलाएं जब खाने-पीने की सामग्री के लिए सड़क पार करते हैं उस समय उन्हें देखकर लगता है कि कभी भी दुर्घटना का शिकार हो सकती हैं ऐसे हालात में अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन की संवेदनशीलता कटघरे में खड़ी नजर आती है।
छात्र-छात्राओं को भी परेशानी
उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में भी कमोबेश यही स्थिति है डिग्री कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी, कन्या महाविद्यालय हो या पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, सभी बाजार से काफी दूर हंै जहां खाने पीने की सामग्री सहज सुलभ नहीं है। कई कई घंटों के लिए इन संस्थाओं में आने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं को भोजन या चाय नाश्ता तो दूर पानी के लिए भी कभी-कभी अत्यधिक परेशान होना पड़ता है। इन हालात को देखते देखते हुए क्या बुराई है यदि इन संस्थानों के परिसर में कैंटीन की स्थापना कर दी जाए। इससे जहां एक ओर सैकड़ों हजारों लोगों को खाने-पीने की सामग्री उपलब्ध हो पाएगी वहीं दूसरी ओर इन कैंटीनों के माध्यम से कई लोगों को रोजगार भी तो उपलब्ध हो सकता है। आमजन की सुविधाओं और समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए जिला प्रशासन एवं संबंधित संस्थानों के अधिकारियों को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और ऐसे सभी स्थानों पर कैंटीन संचालन की अनुमति दी जानी चाहिए जहां बड़ी संख्या में लोगों अथवा छात्र-छात्राओं अधिकारी कर्मचारियों का आवागमन होता है।
शर्मिंदगी की वजह
संभाग मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट यानि संयुक्त जिला कार्यालय बाहर से जितना खूबसूरत नजर आ रहा है, भीतर से उसके दृश्य उतने ही खराब नजर आने लगे हैं। यहां आने वाले जिले भर के लोगों को भोजन, नाश्ता और चाय-पानी के लिए भटकते देख , लोग कहने लगे है कि यह कैसा कलेक्ट्रेट है जहां लोगोंं को पैसे चुकाने के बावजूद ठीक ढंग से भोजन तो दूर चाय तक नहीं मिल पाता। यह आम नजारा हो चला है। संभाग के उमरिया एवं अनूपपुर जिले के संयुक्त जिला कार्यालयों में भी कैंटीन की व्यवस्था है लेकिन संभाग मुख्यालय में नहीं है जो एक तरह से शर्मिन्दगी का कारण भी बना हुआ है।
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