ट्रैफिक की यह दुकान, ले न ले किसी की जान
शहरी यातायात का नहीं ध्यान, रोजाना समय पर खुलती है वसूली की दुकानटांकी बांध के ऊपर से निकलते हैं दुपहिया वाहन चालक कभी भी हो सकता है गंभीर हादसा
शहर का यातायात ध्वस्तप्राय है, भीड़भाड़ वाले चौराहों, तिराहों ही नहीं पूरे शहर में यातायात नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं जिसका ध्यान नहीं है बल्कि वसूली की दुकान पर पूरा ध्यान केन्द्रित है। सुबह 9:00 बजे से दोपहर लगभग 1:00 बजे तक पेट्रोल पंप कोनी एवं अमृता हॉस्पिटल पिपरिया के आसपास दुपहिया वाहनों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती है। वजह है यातायात पुलिस का चेकिंग अभियान, चेकिंग अभियान के नाम पर चलने वाली वसूली की दुकान लगभग रोजाना ही नियत समय पर खुल जाती है परिणाम स्वरूप चालान से बचने के लिए दुपहिया वाहन चालक जान जोखिम में डालकर टांकी बांध के मेड़ से होकर गुजरते और रोड पर आते हैं। जुर्माना या चालान से बचने का उनका यह प्रयास किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है इसका शायद अनुमान भी नहीं है। यदि कभी ऐसा हुआ कि बांध की मेड़ से फिसल कर नीचे गिरने पर किसी की जान चली गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, वसूली करने वाला मैदानी अमला या उनके साहबान ?
शहर का यातायात ध्वस्तप्राय है, भीड़भाड़ वाले चौराहों, तिराहों ही नहीं पूरे शहर में यातायात नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं जिसका ध्यान नहीं है बल्कि वसूली की दुकान पर पूरा ध्यान केन्द्रित है। सुबह 9:00 बजे से दोपहर लगभग 1:00 बजे तक पेट्रोल पंप कोनी एवं अमृता हॉस्पिटल पिपरिया के आसपास दुपहिया वाहनों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती है। वजह है यातायात पुलिस का चेकिंग अभियान, चेकिंग अभियान के नाम पर चलने वाली वसूली की दुकान लगभग रोजाना ही नियत समय पर खुल जाती है परिणाम स्वरूप चालान से बचने के लिए दुपहिया वाहन चालक जान जोखिम में डालकर टांकी बांध के मेड़ से होकर गुजरते और रोड पर आते हैं। जुर्माना या चालान से बचने का उनका यह प्रयास किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है इसका शायद अनुमान भी नहीं है। यदि कभी ऐसा हुआ कि बांध की मेड़ से फिसल कर नीचे गिरने पर किसी की जान चली गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, वसूली करने वाला मैदानी अमला या उनके साहबान ?
(अनिल द्विवेदी 7000295641)
शहडोल। पुलिस कप्तान कुमार प्रतीक के निर्देशन में जिले की पुलिस अपराधों को नियंत्रित कर अपराधियों पर नकेल डालने की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील है, ऐसे कई मामले हैं जिनमें पुलिस ने उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की और पीड़ितों को न्याय दिलाने का मार्ग भी प्रशस्त किया है लेकिन शहर की यातायात व्यवस्था के मामले में पुलिस को वह सफलता नहीं मिल पाई जो मिलनी चाहिए थी। यातायात थाना पुलिस शहर की यातायात व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाने और लोगों को आवागमन की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय सिर्फ समन और चालान वसूली में ही फंस कर रह गई है। कहीं किसी अभियान के नाम पर, तो कहीं अधिकारियों के निर्देश के नाम पर, तो कहीं मन माने तौर पर कहीं पर भी कैंप डालकर वाहनों की चेकिंग के नाम पर वसूली का अभियान शुरू कर दिया जाता है हालांकि यह यातायात पुलिस की ड्यूटी है जो उसे करनी ही पड़ेगी लेकिन सिर्फ एक यही ड्यूटी है ऐसा भी नहीं है। किसी एक ही स्थान पर रोजाना बनिए की दुकान की तरह स्टाॅल लगाकर गरीब मजदूर वर्ग के वाहन चालकों को टारगेट पूर्ति का माध्यम बनाना ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बन चुकाहै।
मजदूरी के बदले इंतजार
यातायात थाना पुलिस द्वारा शहर के किन हिस्सों में कब चेकिंग अभियान चलाया जाता है इस का प्रमाण रीवा रोड में शहडोल शहर की सीमा यानी टांकी नाला पुल के पास तो देखने को मिल ही सकता है जहां पुल के दोनों ओर अमृता अस्पताल और कोनी पेट्रोल पंप के पास दुपहिया वाहनों का मेला सा लग जाता है। कुछ प्रभावशाली और जान-पहचान वाले वाहन चालक तो संबंधों की दुहाई देकर कथित यातायात नाका पार कर जाते हैं, तो कुछ बड़े वाहनों के पीछे छिप कर जबकि शेष बिना हेल्मेट वाले जिनके जेब में पैसे भी नहीं होते घंटों ट्रैफिक पुलिस की नाकाबंदी समाप्त होने के इंतजार में खड़े ही रह जाते हैं और नाका बंदी के चक्कर में उन्हें अपनी दैनिक मजदूरी से भी हाथ धोना पड़ता है।
जोखिम में डाल रहे जान
हेलमेट चेकिंग अभियान के तहत होने वाली जांच से बचने के लिए अपने आप को साहसी मानने वाले कुछ वाहन चालक टंकी बंद की मेड के ऊपर से दुपहिया वाहन लेकर निकलने का जोखिम उठा रहे हैं कई बार देखा गया कि बरसात के इस मौसम में जब मिट्टी में फिसलन होती है वाहन चालक जुर्माना देने से बचने, या किसी कदर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए पीछे के रास्ते से मंजिल तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। उनका यह प्रयास किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है इस बात से स्वयं वह भी अनजान नहीं हैं लेकिन हेलमेट के जुर्माने या वसूली से बचने के चक्कर में वह अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। हालांकि यह वाहन चालकों की खुद की कमजोरी या मजबूरी है लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि कहीं हादसा हो ही गया तो इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा।
बाहर चुस्त, शहर में सुस्त
संभाग मुख्यालय की यातायात व्यवस्था कितनी सुदृढ़ और सुविधापूर्ण है, यह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। शहर में जितने भी ट्रैफिक सिग्नल लगे हैं सभी बंद है कुछ महत्वपूर्ण स्थान को अपवाद मान लिया जाए तो किसी भी चौराहे तिराहे में यातायात पुलिस कर्मी देखने को नहीं मिलते। पूरे शहर में अव्यवस्थित पार्किंग और नौसिखिए वाहन चालकों, शोहदों के वाहनों की धमा चौकड़ी देखते बनती है, आलम यह है कि शहर की सड़कों पर सीधे चल पाना भी कठिन प्रतीत होने लगा है बावजूद इसके यातायात पुलिस के कानों में कभी जूं भी नहीं रेंगती। विभागीय अमला अव्यवस्थित यातायात पर ध्यान दे भी तो क्यों, असली मुनाफा तो शहर के बाहर चेकिंग अभियान में ही नज़र आ रहा है।मुनाफे का लोभ न कर्मचारी छोड़ पा रहे हैं, न ही उनके नजदीकी अधिकारी। ऐसे हालात में कप्तान के आदेश, निर्देश और मंशा पर पानी फिरता भी है तो उनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है।
सिर्फ बाहर ही क्यों?
हेलमेट चेकिंग अभियान हो या शहर की यातायात व्यवस्था वाहन चालकों को नसीहत देकर उनकी जीवन की सुरक्षा का दायित्व निःसंदेह यातायात पुलिस विभाग का ही है, जिसे निभाने का प्रयास कथित तौर पर किया भी जा रहा है। हेलमेट चेकिंग अभियान चलाना गलत नहीं, गलत है एक ही स्थान पर रोजाना सिर्फ गरीब ग्रामीण मजदूरों के आने-जाने के समय जांच करना। सिर्फ शहर के बाहर ही क्यों, क्या शहर के अंदर हेलमेट का नियम लागू नहीं होता, क्या शहर के भीतर यातायात नियमों का उल्लंघन नहीं होता, क्या शहर के लोग हर नियम कानून का पूर्णत: पालन कर रहे हैं ? यदि नहीं तो सिर्फ ग्रामीण गरीब मजदूर और शहर के बाहर से आने या बाहर जाने वाले लोगों के लिए ही इतनी सख्ती क्यों ? पुलिस अधीक्षक को चाहिए कि वह शहर के बाहरी हिस्सों के साथ शहर के भीतर भी वही नियम कायदे लागू करवाएं और शहरी हो या ग्रामीण प्रभावशाली हो या प्रभावहीन सभी वर्ग के लोगों के साथ समानता का व्यवहार किए जाने का निर्देश जारी करें ताकि लोगों का कानून व्यवस्था पर विश्वास कायम रहे।
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शहडोल। पुलिस कप्तान कुमार प्रतीक के निर्देशन में जिले की पुलिस अपराधों को नियंत्रित कर अपराधियों पर नकेल डालने की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील है, ऐसे कई मामले हैं जिनमें पुलिस ने उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की और पीड़ितों को न्याय दिलाने का मार्ग भी प्रशस्त किया है लेकिन शहर की यातायात व्यवस्था के मामले में पुलिस को वह सफलता नहीं मिल पाई जो मिलनी चाहिए थी। यातायात थाना पुलिस शहर की यातायात व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाने और लोगों को आवागमन की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय सिर्फ समन और चालान वसूली में ही फंस कर रह गई है। कहीं किसी अभियान के नाम पर, तो कहीं अधिकारियों के निर्देश के नाम पर, तो कहीं मन माने तौर पर कहीं पर भी कैंप डालकर वाहनों की चेकिंग के नाम पर वसूली का अभियान शुरू कर दिया जाता है हालांकि यह यातायात पुलिस की ड्यूटी है जो उसे करनी ही पड़ेगी लेकिन सिर्फ एक यही ड्यूटी है ऐसा भी नहीं है। किसी एक ही स्थान पर रोजाना बनिए की दुकान की तरह स्टाॅल लगाकर गरीब मजदूर वर्ग के वाहन चालकों को टारगेट पूर्ति का माध्यम बनाना ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बन चुकाहै।
मजदूरी के बदले इंतजार
यातायात थाना पुलिस द्वारा शहर के किन हिस्सों में कब चेकिंग अभियान चलाया जाता है इस का प्रमाण रीवा रोड में शहडोल शहर की सीमा यानी टांकी नाला पुल के पास तो देखने को मिल ही सकता है जहां पुल के दोनों ओर अमृता अस्पताल और कोनी पेट्रोल पंप के पास दुपहिया वाहनों का मेला सा लग जाता है। कुछ प्रभावशाली और जान-पहचान वाले वाहन चालक तो संबंधों की दुहाई देकर कथित यातायात नाका पार कर जाते हैं, तो कुछ बड़े वाहनों के पीछे छिप कर जबकि शेष बिना हेल्मेट वाले जिनके जेब में पैसे भी नहीं होते घंटों ट्रैफिक पुलिस की नाकाबंदी समाप्त होने के इंतजार में खड़े ही रह जाते हैं और नाका बंदी के चक्कर में उन्हें अपनी दैनिक मजदूरी से भी हाथ धोना पड़ता है।
जोखिम में डाल रहे जान
हेलमेट चेकिंग अभियान के तहत होने वाली जांच से बचने के लिए अपने आप को साहसी मानने वाले कुछ वाहन चालक टंकी बंद की मेड के ऊपर से दुपहिया वाहन लेकर निकलने का जोखिम उठा रहे हैं कई बार देखा गया कि बरसात के इस मौसम में जब मिट्टी में फिसलन होती है वाहन चालक जुर्माना देने से बचने, या किसी कदर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए पीछे के रास्ते से मंजिल तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। उनका यह प्रयास किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है इस बात से स्वयं वह भी अनजान नहीं हैं लेकिन हेलमेट के जुर्माने या वसूली से बचने के चक्कर में वह अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। हालांकि यह वाहन चालकों की खुद की कमजोरी या मजबूरी है लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि कहीं हादसा हो ही गया तो इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा।
बाहर चुस्त, शहर में सुस्त
संभाग मुख्यालय की यातायात व्यवस्था कितनी सुदृढ़ और सुविधापूर्ण है, यह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। शहर में जितने भी ट्रैफिक सिग्नल लगे हैं सभी बंद है कुछ महत्वपूर्ण स्थान को अपवाद मान लिया जाए तो किसी भी चौराहे तिराहे में यातायात पुलिस कर्मी देखने को नहीं मिलते। पूरे शहर में अव्यवस्थित पार्किंग और नौसिखिए वाहन चालकों, शोहदों के वाहनों की धमा चौकड़ी देखते बनती है, आलम यह है कि शहर की सड़कों पर सीधे चल पाना भी कठिन प्रतीत होने लगा है बावजूद इसके यातायात पुलिस के कानों में कभी जूं भी नहीं रेंगती। विभागीय अमला अव्यवस्थित यातायात पर ध्यान दे भी तो क्यों, असली मुनाफा तो शहर के बाहर चेकिंग अभियान में ही नज़र आ रहा है।मुनाफे का लोभ न कर्मचारी छोड़ पा रहे हैं, न ही उनके नजदीकी अधिकारी। ऐसे हालात में कप्तान के आदेश, निर्देश और मंशा पर पानी फिरता भी है तो उनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है।
सिर्फ बाहर ही क्यों?
हेलमेट चेकिंग अभियान हो या शहर की यातायात व्यवस्था वाहन चालकों को नसीहत देकर उनकी जीवन की सुरक्षा का दायित्व निःसंदेह यातायात पुलिस विभाग का ही है, जिसे निभाने का प्रयास कथित तौर पर किया भी जा रहा है। हेलमेट चेकिंग अभियान चलाना गलत नहीं, गलत है एक ही स्थान पर रोजाना सिर्फ गरीब ग्रामीण मजदूरों के आने-जाने के समय जांच करना। सिर्फ शहर के बाहर ही क्यों, क्या शहर के अंदर हेलमेट का नियम लागू नहीं होता, क्या शहर के भीतर यातायात नियमों का उल्लंघन नहीं होता, क्या शहर के लोग हर नियम कानून का पूर्णत: पालन कर रहे हैं ? यदि नहीं तो सिर्फ ग्रामीण गरीब मजदूर और शहर के बाहर से आने या बाहर जाने वाले लोगों के लिए ही इतनी सख्ती क्यों ? पुलिस अधीक्षक को चाहिए कि वह शहर के बाहरी हिस्सों के साथ शहर के भीतर भी वही नियम कायदे लागू करवाएं और शहरी हो या ग्रामीण प्रभावशाली हो या प्रभावहीन सभी वर्ग के लोगों के साथ समानता का व्यवहार किए जाने का निर्देश जारी करें ताकि लोगों का कानून व्यवस्था पर विश्वास कायम रहे।
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