श्री राम जानकी मंदिर (राम धाम) सोहागपुर में शिव पुराण कथा का भव्य आयोजन
कथावाचक डॉ. रामकशोर द्विवेदी ने सुनाई ब्राह्मण देवराज और बिदुंग चंचुला की कथा
शहडोल। जिला मुख्यालय स्थित श्री राम धाम यानी राम जानकी मंदिर सोहागपुर में श्री शिव पुराण कथा का भव्य आयोजन किया गया है जिसमें कथावाचक डॉक्टर राम किशोर द्विवेदी शास्त्री द्वारा शिव पुराण कथा का वाचन किया जा रहा है। सार्वजनिक रूप से आयोजित शिव पुराण कथा के मुख्य श्रोता भगवान राघवेंद्र सरकार है जबकि सह श्रोताओं के रूप में स्थानीय परिवारों के लोग शामिल हैं। शिव पुराण कथा आयोजन के प्रथम दिन 4 अगस्त को भव्य कलश यात्रा निकाली गई जो श्री राम धाम से बाणगंग आश्रम पहुंची और वहां से वापस राम जानकी मंदिर आई और शास्त्रोक्त पद्धति से पूजन के उपरांत शिव पुराण कथा प्रारंभ हुई। कथा वाचक डॉ राम किशोर द्विवेदी द्वारा5 अगस्त को श्री शिव पुराण कथा महात्मा का वर्णन किया गया और ब्राह्मण देवराज सहित बिदुंग एवं चंचला की कथा का वाचन किया गया।
डाॅ. रामकिशोर शास्त्री ने बताया कि सूत जी ने शिव पुराण माहात्म्य का वर्णन श्री शौनक जी की जिज्ञासावश किया गया है।श्री शौनक जी ने पूछा :- महाज्ञानी सूत जी, आप संपूर्ण सिद्धांतों के ज्ञाता हैं। कृपया मुझसे पुराणों के सार का वर्णन करें। ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त विवेक की वृद्धि कैसे होती है? तथा साधुपुरुष कैसे अपने काम, क्रोध आदि विकारों का निवारण करते हैं? इस कलियुग में सभी जीव आसुरी स्वभाव के हो गए हैं। अतः कृपा करके मुझे ऐसा साधन बताइए, जो कल्याणकारी एवं मंगलकारी हो तथा पवित्रता लिए हो। प्रभु, वह ऐसा साधन हो, जिससे मनुष्य की शुद्धि हो जाए और उस निर्मल हृदय वाले पुरुष को सदैव के लिए 'शिव' की प्राप्ति हो जाए।
श्री सूत ' जी ने उत्तर दिया :-- शौनक जी आप धन्य हैं, क्योंकि आपके मन में पुराण कथा को सुनने के लिए अपार प्रेम व लालसा है। इसलिए मैं तुम्हें परम उत्तम शास्त्र की कथा सुनाता हूं। वत्स! संपूर्ण सिद्धांत से संपन्न भक्ति को बढ़ाने वाला तथा शिवजी को संतुष्ट करने वाला अमृत के समान दिव्य शास्त्र है- 'शिव पुराण'। इसका पूर्व काल में शिवजी ने ही प्रवचन किया था। गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर आदरपूर्वक इस पुराण की रचना की है। यह पुराण कलियुग में मनुष्यों के हित का परम साधन है।
'शिव पुराण' परम उत्तम शास्त्र है। इस पृथ्वीलोक में सभी मनुष्यों को भगवान शिव के विशाल स्वरूप को समझना चाहिए। इसे पढ़ना एवं सुनना सर्वसाधन है। यह मनोवांछित फलों को देने वाला है। इससे मनुष्य निष्पाप हो जाता है तथा इस लोक में सभी सुखों का उपभोग करके अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है।
'शिव पुराण' में चौबीस हजार श्लोक हैं, जिसमें सात संहिताएं हैं। शिव पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान गति प्रदान करने वाला है। मनुष्य को पूरी भक्ति एवं संयमपूर्वक इसे सुनना चाहिए। जो मनुष्य प्रेमपूर्वक नित्य इसको बांचता है या इसका पाठ करता है, वह निःसंदेह पुण्यात्मा है।
भगवान शिव उस विद्वान पुरुष पर प्रसन्न होकर उसे अपना धाम प्रदान करते हैं। प्रतिदिन आदरपूर्वक शिव पुराण का पूजन करने वाले मनुष्य संसार में संपूर्ण भोगों को भोगकर भगवान शिव के पद को प्राप्त करते हैं। वे सदा सुखी रहते हैं। शिव पुराण में भगवान शिव का सर्वस्व है। इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति के लिए आदरपूर्वक इसका सेवन करना चाहिए। यह निर्मल शिव पुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। अतः सदा प्रेमपूर्वक इसे सुनना एवं पढ़ना चाहिए।
देवराज को शिवलोक की प्राप्ति चंचुला का संसार से वैराग्य"
श्री शौनक जी ने कहा :- आप धन्य हैं। सूत जी! आप परमार्थ तत्व के ज्ञाता हैं। आपने
हम पर कृपा करके हमें यह अद्भुत और दिव्य कथा सुनाई है। भूतल पर इस कथा के समान कल्याण का और कोई साधन नहीं है। आपकी कृपा से यह बात हमने समझ ली है । सूत जी! इस कथा के द्वारा कौन से पापी शुद्ध होते हैं? उन्हें कृपापूर्वक बताकर इस जगत को कृतार्थ कीजिए ।
सूत जी बोले :– मुने, जो मनुष्य पाप, दुराचार तथा काम-क्रोध, मद, लोभ में निरंतर डूबे रहते हैं, वे भी शिव पुराण पढ़ने अथवा सुनने से शुद्ध हो जाते हैं तथा उनके पापों का पूर्णतया नाश हो जाता है। इस विषय में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं।
"देवराज ब्राह्मण की कथा"
बहुत पहले की बात है ... किरातों के नगर में देवराज नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह ज्ञान में दुर्बल, गरीब, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था । वह स्नान-संध्या नहीं करता था तथा उसमें वैश्य-वृत्ति बढ़ती ही जा रही थी। वह भक्तों को ठगता था। उसने अनेक मनुष्यों को मारकर उन सबका धन हड़प लिया था। उस पापी ने थोड़ा-सा भी धन धर्म के काम में नहीं लगाया था। वह वेश्यागामी तथा आचार भ्रष्ट था।
एक दिन वह घूमता हुआ दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूसी-प्रयाग) जा पहुंचा। वहां उसने एक शिवालय देखा, जहां बहुत से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे। देवराज वहीं ठहर गया। वहां रात में उसे ज्वर आ गया और उसे बड़ी पीड़ा होने लगी। वहीं पर एक ब्राह्मण देवता शिव पुराण की कथा सुना रहे थे। ज्वर में पड़ा देवराज भी ब्राह्मण के मुख से शिवकथा को निरंतर सुनता रहता था। एक मास बाद देवराज ज्वर से पीड़ित अवस्था में चल बसा। यमराज के दूत उसे बांधकर यमपुरी ले गए। तभी वहां शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गए। वे कर्पूर के समान उज्ज्वल थे। उनके हाथ में त्रिशूल, संपूर्ण शरीर पर भस्म और गले में रुद्राक्ष की माला उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी।
उन्होंने यमराज के दूतों को मार-पीटकर देवराज को यमदूतों के चंगुल से छुड़ा लिया और वे उसे अपने अद्भुत विमान में बिठाकर जब कैलाश पर्वत पर ले जाने लगे तो यमपुरी में कोलाहल मच गया, जिसे सुनकर यमराज अपने भवन से बाहर आए। साक्षात रुद्रों के समान प्रतीत होने वाले इन दूतों का धर्मराज ने विधिपूर्वक पूजन कर ज्ञान दृष्टि से सारा मामला जान लिया। उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के दूतों से कोई बात नहीं पूछी। तत्पश्चात शिवदूत देवराज को लेकर कैलाश चले गए
और वहां पहुंचकर उन्होंने ब्राह्मण को करुणावतार भगवान शिव के हाथों में सौंप दिया।
शौनक जी ने कहा :- महाभाग सूत जी! आप सर्वज्ञ हैं। आपके कृपाप्रसाद से मैं कृतार्थ हुआ। इस इतिहास को सुनकर मेरा मन आनंदित हो गया है। अतः भगवान शिव मैं प्रेम बढ़ाने वाली दूसरी कथा भी कहिए।
"बिंदुग ब्राह्मण की कथा"
श्री सूत जी बोले :- शौनक ! सुनो, मैं तुम्हारे सामने एक अन्य गोपनीय कथा का वर्णन करूंगा, क्योंकि तुम शिव भक्तों में अग्रगण्य व वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हो । समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश में वाष्कल नामक गांव है, जहां वैदिक धर्म से विमुख महापापी मनुष्य रहते हैं। वे सभी दुष्ट हैं एवं उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता है। वे देवताओं एवं भाग्य पर विश्वास नहीं करते। वे सभी कुटिल वृत्ति वाले हैं। किसानी करते हैं और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी हैं। वे इस बात से पूर्णतः अनजान हैं कि ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म ही मनुष्य के लिए परम पुरुषार्थ हैं। वे सभी पशुबुद्धि हैं। अन्य समुदाय के लोग भी उन्हीं की तरह बुरे विचार रखने वाले, धर्म से विमुख हैं। वे नित्य कुकर्म में लगे रहते हैं एवं सदा विषयभोगों में डूबे रहते हैं। वहां की स्त्रियां भी बुरे स्वभाव की, स्वेच्छाचारिणी, पाप में डूबी, कुटिल सोच वाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सभी सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं। वहां सिर्फ दुष्टों का निवास है।
वाष्कल नामक गांव में बिंदुग नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अधर्मी, दुरात्मा एवं महापापी था। उसकी स्त्री बहुत सुंदर थी । उसका नाम चंचुला था। वह सदा उत्तम धर्म का पालन करती थी परंतु बिंदुग वेश्यागामी था। इस तरह कुकर्म करते हुए बहुत समय व्यतीत हो गया। उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी काफी समय तक धर्म भ्रष्ट नहीं हुई। परंतु आगे चलकर वह भी अपने दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित होकर, दुराचारिणी और अपने धर्म से विमुख हो गई। इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन पति-पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बीत गया।
वेश्यागामी, दूषित बुद्धि वाला वह दुष्ट ब्राह्मण बिंदुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो, नरक में चला गया। बहुत दिनों तक नरक के दुखों को भोगकर वह मूढ़ बुद्धि पापी विंध्यपर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी बिंदुग के मर जाने पर वह चंचुला नामक स्त्री बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में रहती रही। पति की मृत्यु के बाद वह भी अपने धर्म से गिरकर पर पुरुषों का संग करने लगी थी। सतियां विपत्ति में भी अपने धर्म का पालन करना नहीं छोड़तीं। यही तो तप है। तप कठिन तो होता है, लेकिन इसका फल मीठा होता है। विषयी इस सत्य को नहीं जानता इसीलिए वह विषयों के विषफल का स्वाद लेते हुए भोग करता है।
एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह अपने भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गई। उसने तीर्थ के जल में स्नान किया एवं बंधुजनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी । घूमते-घूमते वह एक देव मंदिर में गई। वहां उसने एक ब्राह्मण के मुख से भगवान शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारी कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि 'जो स्त्रियां व्यभिचार करती हैं,
वे मरने के बाद जब यमलोक जाती हैं, तब यमराज के दूत उन्हें तरह तरह से यंत्रणा देते हैं। वे उसके कामांगों को तप्त लौह दण्डों से दागते हैं। तप्त लौह के पुरुष से उसका संसर्ग कराते हैं। ये सारे दण्ड इतनी वेदना देने वाले होते हैं कि जीव पुकार-पुकार कर कहता है कि अब वह ऐसा नहीं करेगा। लेकिन यमदूत उसे छोड़ते नहीं। कर्मों का फल तो सभी को भोगना पड़ता है। देव, ऋषि, मनुष्य सभी इससे बंधे हुए हैं।' ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो गई। कथा समाप्त होने पर सभी लोग वहां से चले गए,
तब कथा बांचने वाले ब्राह्मण देवता से चंचुला ने कहा :– हे ब्राह्मण! धर्म को न जानने के कारण मेरे द्वारा बहुत बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामी! मेरे ऊपर कृपा कर मेरा उद्धार कीजिए। आपके प्रवचन को सुनकर मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है। मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं निंदा के योग्य हूं। मैं बुरे विषयों में फंसकर अपने धर्म से विमुख हो गई थी। कौन मुझ जैसी कुमार्ग में मन लगाने वाली पापिनी का साथ देगा? जब यमदूत मेरे गले में फंदा डालकर मुझे बांधकर ले जाएंगे और नरक में मेरे शरीर के टुकड़े करेंगे, तब मैं कैसे उन महायातनाओं को सहन कर पाऊंगी? मैं सब प्रकार से नष्ट हो गई हूं, क्योंकि अभी तक मैं हर तरह से पाप में डूबी रही हूं। हे ब्राह्मण ! आप मेरे गुरु हैं, आप ही मेरे माता-पिता हैं। मैं आपकी शरण में आई हूं। मुझ अबला का अब आप ही उद्धार कीजिए ।
सूत जी कहते हैं :— शौनक, इस प्रकार विलाप करती हुई चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणों में गिर पड़ी। तब ब्राह्मण ने उसे कृपापूर्वक उठाया ओर इसप्रकार कहा ...
चंचुला की शिव कथा सुनने में रुचि और शिवलोक गमन"
ब्राह्मण बोले :– नारी तुम सौभाग्यशाली हो, जो भगवान शंकर की कृपा से तुमने वैराग्यपूर्ण शिव पुराण की कथा सुनकर समय से अपनी गलती का एहसास कर लिया है। तुम डरो मत और भगवान शिव की शरण में जाओ। उनकी परम कृपा से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। मैं तुम्हें भगवान शिव की कथा सहित वह मार्ग बताऊंगा जिसके द्वारा तुम्हें सुख देने वाली उत्तम गति प्राप्त होगी। शिव कथा सुनने से तुम्हारी बुद्धि शुद्ध हो गई है और तुम्हें पश्चाताप हुआ है तथा मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ है। पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियों के लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित है। पश्चाताप ही पापों का शोधक है। इससे ही पापों की शुद्धि होती है। सत्पुरुषों के अनुसार, पापों की शुद्धि के लिए प्रायश्चित, पश्चाताप से ही संपन्न होता है। जो मनुष्य अपने कुकर्म के लिए पश्चाताप नहीं करता वह उत्तम गति प्राप्त नहीं करता परंतु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चाताप होता है, वह अवश्य उत्तम गति का भागीदार होता है। इसमें कोई शक नहीं है।
शिव पुराण की कथा सुनने से चित्त की शुद्धि एवं मन निर्मल हो जाता है। शुद्ध चित्त में ही भगवान शिव व पार्वती का वास होता है। वह शुद्धात्मा पुरुष सदाशिव के पद को प्राप्त होता है। इस कथा का श्रवण सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है। अतः इसकी आराधना व सेवा करनी चाहिए। यह कथा भवबंधनरूपी रोग का नाश करने वाली है। भगवान शिव की कथा सुनकर हृदय में उसका मनन करना चाहिए। इससे चित्त की शुद्धि होती है। चित्तशुद्धि होने से ज्ञान और वैराग्य के साथ महेश्वर की भक्ति निश्चय ही प्रकट होती है तथा उनके अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य माया के प्रति आसक्त है, वह इस संसार बंधन से मुक्त नहीं हो पाता।
हे ब्राह्मण पत्नी तुम अन्य विषयों से अपने मन को हटाकर भगवान शंकर की इस परम पावन कथा को सुनो – इससे तुम्हारे चित्त की शुद्धि होगी और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। जो मनुष्य निर्मल हृदय से भगवान शिव के चरणों का चिंतन करता है, उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है ।
सूत जी कहते हैं :— शौनक । यह कहकर वे ब्राह्मण चुप हो गए। उनका हृदय करुणा से भर गया। वे ध्यान में मग्न हो गए। ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर चंचुला के नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आए। वह हर्ष भरे हृदय से ब्राह्मण देवता के चरणों में गिर गई और हाथ जोड़कर
बोली :- मैं कृतार्थ हो गई। हे ब्राह्मण! शिवभक्तों में श्रेष्ठ स्वामिन आप धन्य हैं। आप परमार्थदर्शी हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं। साधो ! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूं।
कृपा कर मेरा उद्धार कीजिए। जिस पौराणिक व अमृत के समान सुंदर शिव पुराण कथा की बात आपने की है उसे सुनकर ही मेरे मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ है। उस अमृतमयी शिवपुराण कथा को सुनने के लिए मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है। कृपया आप मुझे उसे सुनाइए ।
सूत जी कहते हैं :– शिव पुराण की कथा सुनने की इच्छा मन में लिए हुए चंचुला उन ब्राह्मण देवता की सेवा में वहीं रहने लगी। उस गोकर्ण नामक महाक्षेत्र में उन ब्राह्मण देवता के मुख से चंचुला शिव पुराण की भक्ति, ज्ञान और वैराग्य बढ़ाने वाली और मुक्ति देने वाली परम उत्तम कथा सुनकर कृतार्थ हुई। उसका चित्त शुद्ध हो गया। वह अपने हृदय में शिव के सगुण रूप का चिंतन करने लगी। वह सदैव शिव के सच्चिदानंदमय स्वरूप का स्मरण करती थी। तत्पश्चात, अपना समय पूर्ण होने पर चंचुला ने बिना किसी कष्ट के अपना शरीर त्याग दिया। उसे लेने के लिए एक दिव्य विमान वहां पहुंचा। यह विमान शोभा-साधनों से सजा था एवं शिव गणों से सुशोभित था।
चंचुला विमान से शिवपुरी पहुंची। उसके सारे पाप धुल गए। वह दिव्यांगना हो गई। वह गौरांगीदेवी मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट व अन्य दिव्य आभूषण पहने शिवपुरी पहुंची। वहां उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी महादेव शिव को देखा। सभी देवता उनकी सेवा में भक्तिभाव से उपस्थित थे। उनकी अंग कांति करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी। पांच मुख और हर मुख में तीन-तीन नेत्र थे, मस्तक पर अर्द्धचंद्राकार मुकुट शोभायमान हो रहा था। कंठ में नील चिन्ह था। उनके साथ में देवी गौरी विराजमान थीं, जो विद्युत पुंज के समान प्रकाशित हो रही थीं। महादेव जी की कांति कपूर के समान गौर थी। उनके शरीर पर श्वेत वस्त्र थे तथा शरीर श्वेत भस्म से युक्त था।
इस प्रकार भगवान शिव के परम उज्ज्वल रूप के दर्शन कर चंचुला बहुत प्रसन्न हुई। उसने भगवान को बारंबार प्रणाम किया और हाथ जोड़कर प्रेम, आनंद और संतोष से युक्त हो विनीतभाव से खड़ी हो गई। उसके नेत्रों से आनंदाश्रुओं की धारा बहने लगी। भगवान शंकर व भगवती गौरी उमा ने करुणा के साथ सौम्य दृष्टि से देखकर चंचुला को अपने पास बुलाया। गौरी उमा ने उसे प्रेमपूर्वक अपनी सखी बना लिया। चंचुला सुखपूर्वक भगवान शिव के धाम में, उमा देवी की सखी के रूप में निवास करने लगी।
बिंदुग का पिशाच योनि से उद्धार"
सूत जी बोले :- शौनक ! एक दिन चंचुला आनंद में मग्न उमा देवी के पास गई और दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगी ।
चंचुला बोली :- हे गिरिराजनंदिनी! स्कंदमाता, उमा, आप सभी मनुष्यों एवं देवताओं द्वारा पूज्य तथा समस्त सुखों को देने वाली हैं। आप शंभुप्रिया हैं। आप ही सगुणा और निर्गुणा हैं
हे सच्चिदानंदस्वरूपिणी! आप ही प्रकृति की पोषक हैं। हे माता! आप ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करने वाली हैं। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्तम प्रतिष्ठा देने वाली परम शक्ति हैं।
सूत जी कहते हैं :- शौनक ! सद्गति प्राप्त चंचुला इस प्रकार देवी की स्तुति कर शांत हो गई। उसकी आंखों में प्रेम के आंसू उमड़ आए। तब शंकरप्रिया भक्तवत्सला उमा देवी ने बड़े प्रेम से चंचुला को चुप कराते हुए कहा- सखी चंचुला ! मैं तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हूं। बोलो, क्या वर मांगती हो?
चंचुला बोली :-- हे गिरिराज कुमारी। मेरे पति बिंदुग इस समय कहां हैं? उनकी कैसी हुई है ? मुझे बताइए और कुछ उपाय कीजिए, ताकि हम फिर से मिल सकें । हे महादेवी ! मेरे पति एक शूद्र जाति वेश्या के प्रति आसक्त थे और पाप में ही डूबे रहते थे।
गिरिजा बोलीं :- बेटी तुम्हारा पति बिंदुग बड़ा पापी था। उसका अंत बड़ा भयानक हुआ। वेश्या का उपभोग करने के कारण वह मूर्ख नरक में अनेक वर्षों तक अनेक प्रकार के दुख भोगकर अब शेष पाप को भोगने के लिए विंध्यपर्वत पर पिशाच की योनि में रह रहा है। वह दुष्ट वहीं वायु पीकर रहता है और सब प्रकार के कष्ट सहता है।
सूत जी कहते हैं :- शौनक ! गौरी देवी की यह बात सुनकर चंचुला अत्यंत दुखी हो गई। फिर मन को किसी तरह स्थिर करती हुई दुखी हृदय से मां गौरी से उसने एक बार फिर पूछा ।
हे महादेवी ! मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे पापी पति का अब उद्धार कर दीजिए । कृपा करके मुझे वह उपाय बताइए जिससे मेरे पति को उत्तम गति प्राप्त हो सके।
गौरी देवी ने कहा :– यदि तुम्हारा पति बिंदुग शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो वह इस दुर्गति को पार करके उत्तम गति का भागी हो सकता है।
अमृत के समान मधुर गौरी देवी का यह वचन सुनकर चंचुला ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर उन्हें बारंबार प्रणाम किया तथा प्रार्थना की कि मेरे पति को शिव पुराण सुनाने की व्यवस्था कीजिए ।
ब्राह्मण पत्नी चंचुला के बार-बार प्रार्थना करने पर शिवप्रिया गौरी देवी ने भगवान शिव की महिमा का गान करने वाले गंधर्वराज तुम्बुरो को बुलाकर कहा- - तुम्बुरो ! तुम्हारी भगवान शिव में प्रीति है। तुम मेरे मन की सभी बातें जानकर मेरे कार्यों को सिद्ध करते हो। तुम मेरी इस सखी के साथ विंध्य पर जाओ। वहां एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। पूर्व जन्म में वह पिशाच बिंदुग नामक ब्राह्मण मेरी इस सखी चंचुला का पति था। वह वेश्यागामी हो गया।
उसने स्नान-संध्या आदि नित्यकर्म छोड़कर अपवित्र रहने लगा । क्रोध के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। दुर्जनों से उसकी मित्रता तथा सज्जनों से द्वेष बढ़ गया था। वह अस्त्र-शस्त्र से हिंसा करता, लोगों को सताता और उनके घरों में आग लगा देता था। चाण्डालों से दोस्ती करता व रोज वेश्या के पास जाता था। पत्नी को त्यागकर दुष्ट लोगों से दोस्ती कर उन्हीं के संपर्क में रहता था। वह मृत्यु तक दुराचार में फंसा रहा। मृत्यु के बाद उसे पापियों के भोग स्थान यमपुर ले जाया गया। वहां घोर नरकों को सहकर इस समय वह विंध्य पर्वत पर पिशाच बनकर रह रहा है और पापों का फल भोग रहा है। तुम उसके सामने परम पुण्यमयी पापों का नाश करने वाली शिव पुराण की दिव्य कथा का प्रवचन करो। इस कथा को सुनने से उसका हृदय सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाएगा।
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